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ये मत कहना(कविता)


*प्रशांत शर्मा*


ये मत कहना की तूफान हदों से गुजरा नही है ,
जमाना अब भी वहीं के वहीं है सुधरा नही है।
करुण रुदन पर हंसकर हवस का रसपान करने वालों,
उतार रहे हो हलक से जो तुम हलाहल है मदिरा नही है ।
जद में आएंगे सारे आशियाने चमन के एक दिन,
तुम खुश हो की ये सैलाब अभी अपनो पर से गुजरा नही है।
काली ,चंडी, दुर्गा सवार हैं आज फिर उस पर,
इतना जान लो तांडव है ये किसी अबला का मुजरा नही।



*प्रशांत शर्मा,चौरई (छिंदवाड़ा)


 


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