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यादेँ (कविता)


-संजय वर्मा"दृष्टि "

 

कभी ऐसा लगता जैसे बेटी ने 

आवाज दी हो 

वार -त्यौहारों पर आती उसकी यादें 

माँ की आँखों में 

बहने लग जाते आँसू ।

 

पडोसी /रिश्तेदार पूछते 

क्या हो गया 

झूठ -मूट कह देती 

कुछ नहीं ।

 

जिनकी बेटियाँ होती है 

वो ही इस मर्म को समझ सकती 

बोल उठती 

क्या बेटी की याद आ रही है 

रोते हुए "हाँ " शब्द 

निशब्द बन जाते है ।

 

रिश्तो कि फ़िल्म ही जीवन में

कुछ इस तरह चलती है 

पहला भाग बाबुल का होता है

मध्यांतर हो जाता 

पिया का घर

 

यही तो जीवन का सच है 

वार -त्यौहारों पर 

किसी से बेटी कि शक्ल मिलने पर 

उसे मन निहारता रहता 

और आँखों से आँसू 

यादों के रूप में गिराता रहता ।

 

इंसान के दिल में 

यादेँ  है 

जो मर्म को समझ कर 

इंतजार करवाती  और 

आँखों से आँसू गिरवाती 

फिर कोई पूछता है की 

क्या हुआ -क्या बिटियाँ की 

याद आ रही  

तब माँ कहती  -हाँ 

यही क्रम हर घर में चलता  

जिनकी बेटियाँ होती 

 

-संजय वर्मा"दृष्टि "

मनावर जिला धार म प्र 

 

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