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निष्कपटता(लघुकथा)




*मीनाक्षी सुकुमारन, नोएडा


कढ़ाई में गरमा गरम पूड़ी निकल रही थी और आलू की सब्ज़ी भी लगभग तैयार थी तभी बाहर घंटी बजी और कामवाली बाई दरवाज़े पर थी। रिद्धिमा ने बिना दरवाज़ा खोले ही उसे बोल दिया थोड़ी देर में आना अभी नाश्ता हुआ नहीं और दरवाज़ा बंद कर दिया। तभी मीना ने रिद्धिमा से पूछा दी ये क्या किया आपने, उसे आने क्यों नहीं दिया। रिद्धिमा तुनक कर बोली अभी किसी ने नाश्ता किया नहीं, बच्चों को खाता देखती तो नज़र नहीं लग जाती। इन लोगों का तो ऐसा ही है अच्छा खाना देखा नहीं लार टपकने लगती है। मीना तुरन्त बोली दी ये गलत बात है, मैं ऐसा नहीं करती जो भी बनता है वो उन्हें भी बराबर देती हूँ ,गरीब हैं इसका मतलब ये नहीं हम ऐसा व्यवहार करें ये तो हमारी निष्कपटता होगी न। 

 

*मीनाक्षी सुकुमारन, नोएडा


 

 

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