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तेरा नाम लिख डाला(कविता)


*विक्रम कुमार*

 

हुआ आगाज भी न था मगर अंजाम लिख डाला

सुबह तेरी इबादत की तुझे ही शाम लिख डाला

 

तू दिल पे छा गई ऐसा मेरे पहली नजर में ही

मोहब्बत की कलम से दिल पे तेरा नाम लिख डाला

 

तुम्हें देखा था जबसे मच गई थी दिल में एक हलचल

तुम्हारे ख्वाब आते थे तुम्हें था सोचता हरपल

तभी से प्रेम तेरे नाम से ही हो गया शायद

मैं तेरे जुल्फ के साए में जाकर खो गया शायद

तेरी आंखों ने जैसे मस्तियों का जाम लिख डाला

मोहब्बत की कलम से दिल पे तेरा नाम लिख डाला

 

उठना चाहता हूं अब मोहब्बत की निगाहों में

पथिक बनकर भटकना है मुझे तेरी ही राहों में

मोहब्बत की मेरे पहचान हो उस रब से भी ज्यादा 

कभी न साथ छोडू़ंगा ये मेरे दिल का है वादा

जेहन में अपने बस यही पैगाम लिख डाला

मोहब्बत की कलम से दिल पे तेरा नाम लिख डाला

 

*विक्रम कुमार, मनोरा , वैशाली, मो. 9709340990

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