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तीन कविताएँ


*राजकुमार जैन 'राजन'*

 

1- औरत

 

जब -जब भी

समय को मुट्ठी में बांधने की

कौशिश की

समय उतना ही तेजी से 

फिसलता रहा 

रेत की तरह

 

उदासी की शैतान परछाइयाँ

यादों के पद चिन्ह बनकर

मन मस्तिष्क पर धमकती है

फड़फड़ाती 

जीवन के पिंजरे में

सामाजिक मानदंडों के खोल चढ़ाए

अभिशप्त परम्पराओं

निःशक्त संवेदनाओं के

बंधनो में छटपटा रही 

मैं एक औरत हूँ

 

हमारा परिचय यही

हमारी गति यही

मन का

 एक दरवाजा खुलता है

तो दूसरा बन्द होता है

इतिहास निर्लज्ज है कि

वह औरत को

'ताड़न की अधिकारी' लिखता है

जबकि पा लिया हमने आज

सारा आकाश

 

अपने दुःख के बोझ

हमने उतार फेंके

शिकवे कितने भी हो हर पल

मनुज़ को जन्म दिया हमने

स्त्रीत्व के ऋण से

कभी पर न पा सकोगे

अन्यथा

हमारे होने का अर्थ ही मिट जाएगा

और सृष्टि चक्र 

एक पल में रुक जाएगा।●

■■■

 

2- संभावना

 

आज फिर एक बार

अपने मन की

उम्मीदों भरी चादर पर

कुछ सपने टांग दिए हैं मैंने

 

चंद भावनाओं के बीज

मेरे भीतर चुपचाप

अंकुरित हो रहे हैं

भीग जाने दो मुझे

भीतर तक

 

अपनी ही आंख के पानी से

जब सिंचूँगा उन्हें

मिल ही जाएगी संभावना

सपनो को बचाने की

घर के आंगन में अंकुरित होंगे

सुख के बिरवे

जिनसे फैलेगा

चहुं और

नव सृजन का प्रकाश

 

यादों का मजबूत बंधनवार

और छांह में सोते हुए सपने

खामोशियों में भी 

दबे पांव आ धमकेंगे

शून्य बनकर वर्तमान को

अस्त न होने देंगे

 

हमारे सपनो के 

शीश महल में

हमारी अटूट आकांक्षाओं का

सैलाब उमड़ेगा और

श्रम का सूरज 

सफलता बन

हर पल मुस्करायेगा।●

■■■■

 

3- युग नायक होने का अहसास

 

भटके हुए 

कुछ लोंगों की जेबों में

रख दिये है सियासतदानों ने

मज़हबी चश्में

और कंधों पर बांध दिए हैं 

कसकर

रक्त रंजित गांधी , महावीर और

रोते हुये आम्बेडकर

अल्लाह और श्रीराम को भी

उलझा दिया है

घातों में, प्रतिघातों में

चलते हैं जो शह-मात के ब्रह्मास्त्र

 

हमारे चारों तरफ

विषबुझा वातावरण है

चैनलों पर गिद्धों- से मंडराते

नकली सोच के असली चेहरे

आचरण में आडम्बर, दम्भ ओढ़े

राष्ट्रद्रोही नेताओं की झूठी चिंघाड़

हम कब तक सहते रहेंगे

 

राष्ट्रहित की टूटती उम्मीदों

के चटखने की आवाज़

झुके सिरों पर मुस्कराहती

कपटभरी विजेता दृष्टि

कचोटती है आत्मा को बार-बार

 

इस तरह हर विसंगति

इस सदी का आचरण है

एक “युगपुरुष” को

 लोकतंत्र के चौराहे पर

कलंकित करना स्वार्थों की

मृग तृष्णा ही तो है

 

उठो,

और विराटता को छुओ

तुम्हें तुम्हारी आस्था का वास्ता

उसने ही दी है आशाओं की डोर

उम्मीदों का सेहरा

हौसलों का समंदर

और दृढ़ता से खड़े होने का साहस

हमारे युवाओं को दिशा

राष्ट्र को सुरक्षा और सम्मान

और युग नायक होने का अहसास!!●

*राजकुमार जैन राजन,चित्रा प्रकाशन,आकोला -312205, (चित्तौड़गढ़),,राजस्थान,मोबाइल: 9828219919,ईमेल:    rajkumarjainrajan@gmail.com

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