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तराश कर मत बनाओ प्रतिमाएं (कविता)



*अलका 'सोनी*

तराश कर मत बनाओ प्रतिमाएं

थोड़ी  अनगढ़  ही  रहने  दो।

 

ऊब  गयी  महलों में  रहकर,

अब ताप भी थोड़ा सहने दो।

 

अलंकार का यह बोझ उतारो

उन्मुक्त  गगन  में  उड़ने  दो।

 

नर   ही बने  रहे  तुम   सदा

मुझको भी  नारी रहने  दो।

 

रख  लो सारी पूजन सामग्री

अब  और न देवी  बनने दो।

 

दुर्गा,  लक्ष्मी , काली की ये

उपमायें  तुम बस रहने दो।

 

है   वाणी , मूक   नही  मैं,

प्रखर प्रवाह बन बहने दो।

 

इंद्रधनुषी  इस  जीवन  में

स्वयं  सप्त  रंग भरने दो।

 

*अलका 'सोनी',बर्नपुर, पश्चिम बंगाल


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