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स्मार्ट फोन का हमारे जीवन पर प्रभाव


*रश्मि एम मोयदे*

स्मार्ट मोबाइल  का हमारे सामाजिक जीवन पर कितना  प्रभाव पड़ा है और इसके कितने अच्छे व बुरे परिणाम  हुये है, इसके बारे में थोड़ा विचार जरूर करना चाहिए।

स्मार्ट मोबाइल ने हमारे सामाजिक जीवन को बहुत प्रभावित किया है, इसके कारण ही  हम एक दूसरे के सम्पर्क में आये है। किसी से बात करना हो, किसी के बारे मे जानकारी हासिल करना हो, तो गूगल के द्वारा घर बैठे  सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक आदि विषयों पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

रसोई से लेकर ज्ञान  विज्ञान, की बात हो या देश विदेश की खबरें या पैसों का लेन-देन हो या  दूर बैठे  किसी अपने को देखना हो हालचाल पूछने हो, तुरन्त हमारी मन की मुराद पूरी हो जाती है, जैसे कोई अलादीन का चिराग हो हमारे पास। जैसे ही उसे स्पर्श किया  वैसे ही जी मेरे आका, हुकुम कीजिए, और आपकी इच्छा, गूगल रूपी जिन्न तुरन्त पूरी कर देता है। 

लेकिन आजकल की जनरेशन  को इन्तजार क्या होता हैं, ये मालूम ही नहीं है। इन्तजार तो हम अपने जमाने में किया करतें थें। किसी अपने के सुख-दुख के हालचाल लेना हो, परदेश में बैठे पिया से बात करनी हों, सखी सहेली से ठिठोली करना हो तो पहले बैठकर उन्हें, चिट्ठी लिखो, प्रिय सजना को लव लेटर लिखो, फिर पोस्ट करो, तीन दिन बाद उन्हें हमारा पत्र मिलता फिर वो जवाब देते, हफ्ते भर के  लम्बे इन्तजार के बाद की खुशी का बयान करना और उसका शब्दों में वर्णन करना कितना मुश्किल है। लेकिन हमारे जमाने का मजा ही, अलग था, कोई इसे समझ नहीं पायेगा। खैर, धीरे धीरे समय ने करवट बदली, अब चिट्ठी के साथ   साथ जरूरी व जल्दी मेसेज भेजने के लिये टेलीग्राम का उपयोग करते थे। । फिर टेलीग्राम ने टेलीफोन का रूप ले लिया। शूरू शूरू में किसी किसी के यहां ही टेलीफोन होते थे, बड़ी जिज्ञासा होती थी, फिर हम भी उन्हें अपने रिश्तेदार का टेलीफोन नम्बर देकर आते थे, और जब वो कहते आप का फोन आया है तो हम ऐसे सीना तानकर बड़े गर्व से जाते थे जैसे दुनिया के सबसे बड़े धन्नासेठ हम ही हैं।  बाद में घर घर  में टेलीफोन हो गये। अब टेलीफोन के बाद मोबाइल का जमाना आ गया, फिर स्मार्ट मोबाइल जिसमें व्हाट्सएप, फेसबुक ट्वीटर  आदि सारे जहां की सारी जानकारी, सभी सुख-सुविधाएं, कौन सा ऐसा मुश्किल काम है जिसे स्मार्ट मोबाइल हल नहीं कर सकता है।

लेकिन किसी भी कार्य की अति अच्छी नहीं होती।

आज भले ही हम व्हाट्सएप और फेसबुक के जरिए एक दूसरे को जानने लगे हैं, लेकिन  फिर भी हम भीड़ में भी अकेले हो गये है, दिलो की दूरियां बढ़ गई है, समाज और अड़ोसी  पड़ोसी गली मोहल्ले में क्या परेशानी है, इसकी हमें कोई जानकारी नहीं है।

 हम दिन रात मोबाइल और व्हाट्सएप पर लगें रहते। एक से अनेक ग्रुप से जुड़ जाते हैं, और हर ग्रुप में वही एक सा मेसेज रिपीट करते रहते है एक जैसे ही मेसेज सब दूर घुमते रहते है। बच्चे भी छोटे हो या बड़े पूरे टाइम मोबाइल में घुसे रहते, है जिससे उनकी आंखें कमजोर होती  जा रही है, याददाश्त कमजोर हो रही है।

 कभी कभी कोई गलत  रास्ते पर भटक जाते हैं। 

 हमें भी कल तक  जहां  सारे टेलीफोन 

नम्बर कंठस्थ थे, आज हम अपना  नम्बर भी मोबाइल खोलकर देखते हैं, और भी बहुत कुछ नुकसान होता हैं।

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। हर चीज में अच्छाईयां और बुराइयां होती है। हमें तय करना है कि किस तरह हमे सन्तुलन बनाकर चलना है। और बच्चों को सही जानकारी देना है। अच्छी सोच का अच्छा नतीजा होता है, हम जैसा सोचते हैं उसका परिणाम भी वैसा ही होता है।

अब हमें तय करना है कि हमें स्मार्ट मोबाइल का किस तरह  का और कितना उपयोग करना है।

                     

*रश्मि एम मोयदे,91/1 मंछामन गणेश कालोनी,उज्जैन म.प्र.,मो.7000781619

 


 


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