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सबके दिलों पर छाने को(कविता)







*मोहित सोनी*


दिल में उम्मीदें लेकर,
अपनों को दिलासा देकर,
घर से दूर हम,
निकल पड़े,
चन्द पैसे कमाने को ।


आंखों में देखे सपने बड़े,
जिद पूरी करने को अड़े,
अपने लिए,
अपनों से लड़े,
उज्जवल भविष्य बनाने को ।


यादों का सहारा साथ,
उम्मीदों का थामें हाथ,
कोशिश में जी जान से लगे,
कुछ बन दिखाने को,
कुछ कर दिखाने को ।


हाथ-पैर सब मार रहे,
कभी जीत-कभी हार रहे,
चुनौतियों से जूझ रहे,
पहेलियाँ बूझ रहे,
ढूंढ रहे खुद में, आज जमाने को ।


माँ तरसे,देखने को,
पिता तरसे,मिलने को,
उनकी 'आँखों का तारा' तरसे,
प्यार पाने को,
माँ के हाथ के खाने को।


सुख-शांति,पाने को,
अपनों संग पल बिताने को,
सोचता हूँ लौट जाऊं घर,
पर रह जाता,मन मार कर,
बहुत दिल करता है वहाँ जाने को।


फिर याद आती है,
माँ की सीख, पिता की ये बात कि-


"सीढ़ी बना लो ताने को,
वजह बना लो बहाने को,
करो प्रयास, न छोड़ो आस,
खुद पर रखो अटूट विश्वास,
हो जाओगे तैयार फिर तुम,
सफल हो जाने को,
सबके दिलों पर छाने को।"


*मोहित सोनी, तिलक मार्ग, कुक्षी, जिला-धार,म.प्र.



 


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