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निमाड़ (कविता)


*स्वप्निल शर्मा*


नीम की आड़ का
कोई इलाका नहीं
निमाड़
एक परिवार है जंगलों का
नदियों और पहाड़ों का
मंदिरों और नगाड़ों का
निमाड़ जहाँ
प्रेम और आत्मीयता से लबरेज
जज्बा है लोगों का
निमाड़ नाम है
बाड़ो और दड़बों का
गोधूलि की उड़ती धूल का
पहली बारिश में भीगी मिट्टी की
सौंधी - सौंधी खुशबू का
दरअसल निमाड़ नाम है
नर्मदा के दर्शन करने की
मांडव से झाँकती
रानी रूपमति की प्रतीक्षा का
निमाड़ नाम है
नदियों में डुबकी लगाती और
आस्था का ग्रहण छुड़ाती
महेश्वर के घाट उतरती
ओंकारेश्वर का पहाड़ चढ़कर
शिव मंदिरों में
कावड़ से जल चढ़ाती
परंपरा का
निमाड़ में कुंदा हो या मान नदी का किनारा
भट्टी पर चढ़ती महुए से महकती
कच्ची दारू का नाम है निमाड़
आदिवासियों के हाट बाजारों का
चूड़ियाँ खनकाती भगोरिया में फुदकती
भिलनियों का
और अब निमाड़ हो गया
बिना नीम की आड़ का
निमाड़ नाम है सूखे हुए ताड़ का
आदिवासियों के पलायन का।


*स्वप्निल शर्मा,गुलशन कालोनी,धार रोड,मनावर (धार) मो. 9685359222



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