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नर्मदा का क्रोध(कविता)


- स्वप्निल शर्मा
हे नदी
तुम क्यो तोड़ती हो तटबंध अपना
तुम नर्मदा हो
प्रलय में अछूती रहने वाली
सदा सर्वदा हो
मनुष्य ने तुम्हें
किया बांधने का प्रयास
तुम्हारे क्रोध से
अब हो रहा है सर्वनाश
हरसूद डूबा निसरपुर डूबा
डूब गया हर गांव
कोई समझ न पाया
दर्द डूबने वालांे का
हे नर्मदा तुम लील रही हो
खेत, खलिहान, घर और टापरे
प्रातः स्मरण करने वालो का
हे माॅ नर्मदा
अब शांत हो जाओ
तुम पर अत्याचार करने वालो के
पापो को अब भूल जाओ


- स्वप्निल शर्मा


गुलशन काॅलोनी, धार रोड़, मनावर(धार) म.प्र. मो. 9685359222


 

 

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