-श्वेतांक कुमार सिंह
नदी की लय से
यदि लिख सकते हो
कोई कविता,
तो बचा रहेगा
ये गाँव,
शायद ये देश भी।
हूबहू भले न हो,
सादी तस्वीर जैसा हीं सही
पहचान जरूर लोगे उसे
वर्षों बाद भी।
ऐसा इसलिए कह रहा हूँ
जब भरी हुई थी नदी
भरा रहता था मेरा गांव।
पर
अब उसके सूखने पर
सिकुड़ता जा रहा है बचपन
साथ हीं साथ
सुबह की चाय में घुलकर
कहीं खो सा गया है
अपनों का अपनापन!
-श्वेतांक कुमार सिंह
बलिया/कोलकाता
मो.-- 8318983664
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