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काश! कुछ वक्त मिल जाता(कविता)


*विवेक जगताप*

 

मौत तू रहस्य है,

सदा, सर्वदा, सर्वत्र मौजूद एक आश्चर्य है,

आहिस्ता-आहिस्ता इंसान की ओर

जब तू बढ़ती है,

साँस थमती है, नब्ज घटती है,

बेचैनी बढ़ती है,

मौत से आलिंगन से पहले जिम्मेदारियों 

को निपटाने का एहसास जागता है,

इसलिए, इंसान मौत से भागता है,

बेटी की शादी और बेटे के भविष्य का प्रश्न उसे पल-पल सताता है,

वक्त कम होता है,

वक्त की इस अल्पता में, वह उत्तरदायित्वों

की पूर्णता चाहता है,

वह कोशिश करता है,

कुछ हद तक कामयाब भी होता है,

फिर एक दिन मौत का दामन थाम,

दुनिया से अलविदा हो जाता है।

,,पर जब मौत शीघ्रता से अपने आगोश में लेती है,

तब समय नहीं होता,

कुछ करने का, कुछ कहने का,

कुछ सोचने का,

सिर्फ एक लाचारी होती है,

काश! कुछ वक्त मिल जाता,

पत्नी के सिर पर हाथ तो रख देता,

बेटी का माथा तो चूम लेता,

बेटे को सीने से लगा लेता,

कुछ बात तो कर लेता,

पता नहीं...

अब के बिछड़े, ना जाने किस जन्म में मुलाकात होगी,,

काश!

काश! कुछ वक्त मिल जाता,

कुछ वक्त मिल जाता।

 

*विवेक जगताप(कुमार विवेक), राजबाड़ा चौक, धरमपुरी जिला धार(म.प्र.)मो.-9584090969, 7000338116

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