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जिस खूँटे से बाँध गये तुम (नवगीत)


जिस खूँटे से बाँध गये तुम  


उस खूँटे पर टिकी हुई हूँ


पापाजी !


 


 खाने-पीने की सुविधा है    


सब कुछ है परिवार बड़ा है  


लोटे तो हैं चार-पाँच पर


पानी का बस एक घड़ा है   


मैं बस चौका-बरतन-पोंछा


और चपाती सिंकी हुई हूँ   


पापाजी !


 


घर में गेहूँ-धान-बाजरा


मुट्ठी भर अब चना नहीं है


खाली पड़ीं पतुकियाँ उठँगी


आटा भी कुछ सना नहीं है 


झाँपी बटुआ खोंइछा खाली  


मैं अनाज की बिकी हुई हूँ 


पापाजी !


 


मोल गई है जबसे चूड़ी 


ईंगुर ताना मार रहा है


छत पर सूरज रोज उतरकर  


चितवन-ढेला मार रहा है


अंदर से मैं टूट चुकी हूँ 


मन से भी मैं डिगी हुई हूँ


पापाजी !


 


*शिवानन्द सिंह 'सहयोगी','शिवाभा' ए-233 गंगानगर ,मेरठ ,उ.प्र.,दूरभाष-  9412212255


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