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जिन्दगी(कविता)








 -अपूर्वा पवन बर्वे,

यह है जिन्दगी का खेल निराला

कभी है गम का पहाड़ तो

कभी खुशियाँ का मेला ...

कही धूप कही छाया

कही मोह कही माया

कही दिलों का मेल

कही नफरतो का खेल।

कही प्यार की सच्चाई

कही दर्द की गहराई

कभी मस्ती कभी शैतानी

कही जीद कही नादानी ।

कही दोस्त कही दुश्मन

कही दिलों से दिलो का बन्धन

कही यादों की बौछार

कही मतलबी संसार ।

कही झूठ कही फरेब

कही छल कही मतभेद

कही परायो मे अपनापन

कही अपनो मे परायापन ।

कुछ बातें अनकही सी

कुछ अल्फाज अनसुने से

कुछ अधुरे किस्से

कुछ टूटे रिश्ते ।

कही ख्वाहिशे अधूरी

कही खोये सपने

कही परेशानियां

कही उलझने ।

कभी कश्मकश सी

कभी बहुत आसान सी है

यह जिन्दगी ।

लेकिन

अपनो के बिना

अधूरी सी है

यह जिन्दगी ।।

 

 -अपूर्वा पवन बर्वे, इंदौर






 




 



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