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जवाब दो(कविता)


मैने कब कहा मुझमे सौ खुबियां हैं
तुम उन्हें देखो और मुझसे प्यार करो 
नहीं चाहिए अधीनता का स्नेह
नहीं चाहिए शर्तों से भरा अपनापन 
जिसकी बुनियाद खोखली रही हो



उस मोहब्बत की इमारत कब तक ठहरती
मेरा हवाओं संग खेलना ,
बेतुकी बातों पर खिलखिलाना 
हर सुख दुख में मुस्कुराते रहना
इन्हीं सब से तुमने प्यार किया था 



तुम्हें भला लगता था मेरा बचकानापन
क्यों अभद्रता बन गयी वही हटखेलियाँ?
कैसे बन गयी हमारी चंचलता?
तुम्हारे लिए पहेलियां



जिन आदतों से तुमने मुझे चाहा था
क्या सिर्फ मुझे पाने का वो बहाना था। 
हाँ, हमने कहा भी तो था मुझमे है सौ कमियां



तब हँस कर तुमने कहा ---
हाँ कीचड़ में ही उगतीं हैं कमल की कलियां। 
अब  कलियों का यौवन सुख गया 
या फिर भवरें का मन भर गया


जवाब दो... जवाब दो...जवाब दो


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