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गीता ज्ञान परीक्षा के पच्चीस वर्ष (लेख)


 


-विवेक मित्तल
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि ”मैं गीता के आश्रय में रहता हूँ। गीता मेरा श्रेष्ठ घर है। गीता के ज्ञान का सहारा लेकर ही मैं तीनों लोकों का पालन करता हूँ।”        
श्रीमद्भगवद् गीता के बारे में अनेक महापुरुषों ने अपने-अपने मत प्रकट किये हैं, प्रस्तुत हैं कुछ अंश -
जगद्गुरु श्री आद्यशंकराचार्य का कहना है कि ”गीता शास्त्र सम्पूर्ण वेदार्थ का सार संग्रह रूप है। गीता शास्त्र का अर्थ जान लेने पर समस्त पुरुषार्थों की सिद्धि होती है।“
स्वामी विवेकानन्द का मानना है कि “गीता को प्रतिदिन पढ़ने से नये-नये भाव उत्पन्न होते रहते हैं, इससे यह सदैव नवीन बना रहता है एवं एकाग्रचित्त होकर श्रद्धा-भक्ति सहित विचार करने से इसके पद-पद में परम रहस्य भरा हुआ प्रत्यक्ष प्रतीत होता है।“
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के अनुसार “गीता मानवमात्र के लिए शाश्वत प्रेरणा का स्रोत है। मैं निरन्तर विशेषतया कठिन परिस्थिति में गीता का अध्ययन करने पर संतुलित लाभ प्राप्त करता हूँ और गीता से मेरी समस्या का समाधान हो जाता है।“
सद्गुरुओं और महामनाओं की परम्परा को अविरल बढ़ाते हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गये उपदेश को सार्थक और चरितार्थ करते हुए निष्काम कर्म किये जा रहे हैं आध्यात्मिक गुरु, सन्त एवं अधिष्ठाता श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर, शिवमठ, शिवबाड़ी, बीकानेर के पूज्य स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज। मानव प्रबोधन प्रन्यास द्वारा विगत 24 वर्षों से पूज्य स्वामी के मार्गदर्शन में गीता ज्ञान परीक्षा का आयोजन किया रहा है। इस वर्ष यह गीता ज्ञान परीक्षा अपने 25 वर्ष पूर्ण करने जा रही है।
गीता ज्ञान परीक्षा विद्यार्थियों को श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को अपनाते हुए आदर्श मानव बनना सिखाती है और दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। वर्ष 1995 में मात्र 100 से भी कम विद्यार्थियों से आरम्भ हुई गीता ज्ञान परीक्षा के माध्यम से वर्तमान में पचास हजार से अधिक विद्यार्थियों के अन्तःकरण में भारतीय संस्कृति के बीजों को वपन और पल्लवित करने का कार्य प्रतिवर्ष किया जा रहा है। श्रीमद्भगवद् गीता के ज्ञानामृत को सुगमतापूर्वक और अनवरत विद्यार्थियों तक पहुँचाने के लिए गीता साधक अपनी अमूल्य सेवा प्रदान कर रहे हैं, इस परीक्षा को गतिशील बनाये हुए हैं। वे सभी साधुवाद के पात्र हैं।
स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज के अनुसार, ”गीता भारतीय संस्कृति का एक गौरव-पूर्ण ग्रन्थ है, 'गीता कामधेनु भी है'। मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को छुआ है गीता ने। यदि हमने श्रीमद्भगवद् गीता को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया है तो समाधान निश्चय ही प्राप्त होगा। गीता से जुड़ कर परिवार, समाज, शिक्षा, खेल, राजनीति, चिकित्सा, शासन-प्रशासन आदि अनेक क्षेत्रों में मानव उत्तरोतर प्रगति कर सकता है और अपने जीवन को आनन्दमय, सरस और सरल बन सकता है।“
स्वस्थ तन और स्वस्थ मन से स्वस्थ व्यक्ति का निर्माण होता है। स्वस्थ व्यक्ति से समृद्ध परिवार का, समृद्ध परिवार से सशक्त समाज का, सशक्त समाज से शहर तथा राज्य का और उन्नत राज्यों से मिल कर प्रगतिशील, खुशहाल और शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण होता है, ऐसा अद्भुत ग्रन्थ है श्रीमद्भगवद् गीता।
गीता ज्ञान परीक्षा - परिचय
घर-घर में गीता  पहुँचाने के संकल्प  को लेकर वर्ष 1995 में यह परीक्षा  मन्दिर  परिसर में आयोजित की गई। गीता ज्ञान परीक्षा के माध्यम से लगभग 5 लाख गीता-पुस्तकें विद्यार्थियों तक पहुँच चुकी है। वर्तमान में शिशुवर्ग, कनिष्ठ वर्ग, वरिष्ठ वर्ग तथा महाविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों के लिए आयोजित की जाती है गीता ज्ञान परीक्षा। विद्यार्थियों का उत्साहवर्द्धन करने के लिए भव्य पुरस्कार वितरण समारोह मन्दिर परिसर में आयोजित किया जा है। जिसमें गीता लिखित परीक्षा, श्लोक स्मरण परीक्षा, भाषण व निबन्ध प्रतियोगिता में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कृत तथा चल वैजन्तियाँ प्रदान की जाती हैं।
क्या सोचते हैं गीता ज्ञान परीक्षा प्रभारी
स्वामी समानन्दगिरिजी ने गीता की सुक्ष्मता के बारे में समझाया कि ऋषिभिर्-बहुधा गीतं, छन्दोभिर्-विविधैः पृथक्.... (गीता 13.4) ऋषियों के अनुभव से ओतप्रोत, उपनिषदों द्वारा प्रतिपादित एवं ब्रह्मसूत्र द्वारा तर्क एवं युक्ति जो सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक है और वर्तमान विज्ञान (जो सिर्फ युक्ति को मानती है) से आगे बढ़कर श्रीकृष्ण उसी ज्ञान को अत्यन्त सरल शब्दों में प्रकट किया है, उसी विज्ञान को सूक्ष्मता से समझें और ग्रहण करें। यह वही ज्ञान है जो 'इमं विवस्ते योगं, प्रोक्तवानह- मव्ययम्...' (गीता 4.1) सृष्टि की उत्पत्ति के समय उन्होंने मनु को दिया, मनु ने इक्ष्वाकु को दिया था।
मानव प्रबोधन प्रन्यास के सचिव स्वामी विमर्शानन्दगिरिजी ने गीता ज्ञान परीक्षा की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पूज्य गुरुदेव में मार्गदर्शन में संचालित होने वाली इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य गीता से जुड़कर गीता के जीवन सूत्रों को आचरण में उतारना है। भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात् वाडमय विग्रह श्रीमद्भगवद गीता को आज घर-घर, गाँव-गाँव, ढांणी-ढांणी पहुंचाने का स्तुत्य प्रयास विद्यार्थियों के माध्यम से किया जा रहा है। गीता से जुड़ने के बाद निश्चय ही विद्यार्थी श्रेष्ठ नागरिक बनेंगे तथा राष्ट्र के चहुंमुखी विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
वरिष्ठ साधिका एवं गीता ज्ञान परीक्षा प्रभारी डॉ. शशि गुप्ता का मानना है कि गत 24 वर्षों से परम पूज्य स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज की अध्यक्षता में गीता ज्ञान परीक्षा आयोजित की जा रही है। इस परीक्षा से सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि विद्यार्थियों को गीता का परिचय प्राप्त हुआ। कुछ विद्यार्थियों ने इसे पढ़ कर इसकी शिक्षा को व्यवहार में लाने का सफल प्रयास किया, उनका जीवन उन्नत हुआ। तनावमुक्त हुआ। उन्होंने जीवन जीने की कला सीखी।
शिक्षिका श्रीमती मंजु गंगल ने अपने अनुभव साझा कर करते हुए बताया कि गीता परीक्षा प्रभारी होने के कारण मुझे भी गीता पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। गीता को प्रतिदिन पढ़ने से नित्य नए भाव उत्पन्न होते हैं। मन ही सारी समस्याओं की जड़ है। इसके अध्ययन से मन की चंचलता, विकलता कम होकर स्थिरता, एकाग्र चित्तता की ओर बढ़ने पर कई समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाता है। इसके पद-पद में रहस्य भरा हुआ है।
मेरा ऐसा मानना है कि दिव्य आत्मा अनन्त में विचरण करते हुए कब आती है और कब वापस चली जाती है, हम जान नहीं पाते। बीकाणा वासियों के लिए यह गर्व का विषय है कि दिव्य आत्मा, ज्ञानपुंज और आध्यात्मिक गुरु के रूप में हम सभी को, विशेषकर विद्यार्थियों को स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज का सतत् मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। उनका सकारात्मक मार्गदर्शन हम सभी को निराशा, तनाव, कुण्ठा, डर रूपी अन्धकार से निकाल कर उजले पथ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। हम सबको उनके द्वारा प्रज्वलित गीता ज्ञान परीक्षा रूपी दिव्य जोत को निरन्तर आगे बढ़ाते चलना है, ताकि हम अपनी ज्ञान-परम्परा और सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध और अक्षुण्ण बनाये रख सकें और आने वाली पीढ़ी भी इसके वर्द्धन में सक्षम बन सके।    

*विवेक मित्तल, बीकानेर,मो. 9414309014
 



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