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बेटी के नाम(कविता)


-अनुजीत इकबाल


तुम्हारे कोमल हाथों में देखा


एक संपूर्ण ब्रह्मांड


तब मैंने जाना


अंतस्तल तक विस्तृत होने का द्वार


यह भी है


मोक्ष का किवाड़ खुलता है


तुम्हारी छोटी हथेली में।


 


तुम्हारी चंचल दृष्टि में देखा


एक पूर्ण अवलंब


तब मैंने जाना


चित्त को दिव्य करने वाला जलाकाश


यह भी है


स्वयं को विस्मृत करने का मार्ग है


तुम्हारे कस्तूरी नैनों में।


 


तुम्हारी मधुर खिलखिलाहट में देखा


एक दीप्त आकाशपथिक


तब मैंने जाना


दिव्य कुसुम को बिखराने वाला पारिजात


यह भी है


अस्तित्व पुष्पदाम हो जाता है


तुम्हारी हंसनाद सी मुस्कान में।


 


तुम्हारे गुलनार पोरों में देखा


एक प्रखर नक्षत्रपथ


तब मैंने जाना


भीतर के अवगुंठन खोलने वाला शस्त्र


यह भी है


चेतना का अस्त्रकंटक मुक्त होता है


तुम्हारी सजीली अंगुलियों में।


-अनुजीत इकबाल


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