Subscribe Us

अपने पुरखों के पराक्रम परम्पराओं, संघर्ष और शौर्य को रेखांकित करें साहित्यकार -प्रो बी.एल. आच्छा


भोपाल। 'अपने पुरखों के पराक्रम परम्परा शौर्य और संघर्ष को रेखांकित करें साहित्यकार और उस पर गर्व करें,राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिये सांस्कृतिक आत्मा की खोज ज़रूरी।' यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार प्रो बी.एल. आच्छा के जो लघुकथा शोध केंद्र समिति द्वारा आयोजित पुस्तक पख़वाड़े के बारहवें दिन पुस्तक विमर्श के आयोजन की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।

आयोजन में उपन्यासकार कुमार सुरेश के उपन्यास 'संभावि युगे युगे ' पर चर्चा में भाग लेते हुए वरिष्ठ समीक्षक डॉ. वीणा सिन्हा ने कहा की हमें बिना इतिहास को जाने भविष्य की योजना नहीं बना सकते, इतिहास से हमें सीख लेना चाहिए, यह उपन्यास हमारे पुरखों के संघर्ष बलिदान और साहस की गाथा है किस वीरता से उन्होंने आक्रमणकारी लुटेरों का सामना किया इसकी गहरी पड़ताल करती है यह कृति, वरिष्ठ कहानीकार उर्मिला शिरीष के कहानी संग्रह पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक डॉ.विभा कुमारी ने संग्रह की कहानियों को युग के यथार्थबोध और शाश्वत सत्य को उदघाटित करती आम जन जीवन की कहानियां बताया।

आयोजन की तीसरी समीक्षित कृति डॉ. निहार गीते की 'मेहंदी लाये दे पिया मोती झील से' पर विमर्श में भाग लेते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पुरुसोत्तम दुबे ने विस्तार से कहानियों के शिल्प व कथ्य पर बात रखते हुए इन कहानियों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में स्वागत उदबोधन डॉ रंजना शर्मा ने दिया, तथा आयोजन का सफल संचालन कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ने किया।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ