भोपाल| 'जो रचना पाठक के ह्रदय उसके मानस पटल पर अंकित हो जाये वही सृजन सार्थक, हमें भुला देने वाले नकारात्मक पुरातन विषयों को अपने लेखन का हिस्सा बनाने से बचना चाहिए।' यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रबोध गोविल, जयपुर के जो लघुकथा शोध केंद्र समिति भोपाल द्वारा आयोजित पुस्तक पख़वाड़े में कृति विमर्श के आयोजन की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।'
आयोजन में सर्वप्रथम स्वागत उदबोधन केंद्र की और से घनश्याम मैथिल अमृत ने दिया, इसके बाद वरिष्ठ रचनाकार मधुलिका सक्सेना के सुमधुर संचालन में पुश्तों पर समीक्षा के अंतर्गत सबसे पहले वरिष्ठ उपन्याकार राज नारायण बोहरे, दतिया के चर्चित उपन्यास 'अस्थान ' पर विमर्श में भाग लेते हुए समीक्षाक राम भरोसे मिश्र ने इस उपन्यास को साधुओं के मनोवैज्ञानिक सामाजिक अध्ययन का महत्वपूर्ण उपन्यास बताया जिसमें साधुओं के रहस्यमय संसार के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए ढोंगी साधुओं का पर्दाफाश किया है यह कृति बहुत शोध और अनुसन्धान के बाद लिखी गई है।'
आयोजन की दूसरी कृति 'विजयधारी' उपन्यास लेखिका सुश्री शिवानी शर्मा पर समीक्षक डॉ. रंजना शर्मा ने प्रकाश डालते हुए कहा की 'यह उपन्यास महाभारत के पात्र कर्ण के जीवन से जुड़े रहस्ययों को नए ढंग से। विवेचित करता है इस पात्र के बारे में एक नई दृष्टि देकर उसे नायक के रूप में स्थापित करता है।
आयोजन में तीसरी कृति 'हवा की झोंका थी वह ' (कहानी संग्रह) लेखिका अनीता रश्मि पर चर्चा में भाग लेते हुए समीक्षक डॉ. कुमारी उर्वशी, रांची झारखण्ड ने संग्रह की कहानियों को आदिवासी जनजीवन की समस्याएं और परिवेश से जुड़ी खासकर महिलाओं से जुड़े सामाजिक मुद्दों उनके अधिकार और शोषण से जुड़ी कहानियां प्रभावी हैं।' कार्यक्रम के अंत में केंद्र की और से रेखा सक्सेना ने सभी का आभार प्रकट किया।
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