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प्रेमचंद ने साहित्य को जनोन्मुखी बनाया


उज्जैन। जब तक समाज में गरीबी, शोषण, गैर बराबरी, नारी अत्याचार और आतंकवाद जैसी समस्याएं व्याप्त रहेंगी तब तक प्रेमचंद की प्रासंगिकता बनी रहेगी । प्रेमचंद को याद करना एक ऐसे साहित्यकार का स्मरण करना है जिसने गुलाम भारत के समाज की वसंगतियां का अपने उपन्यासों और कहानियों में बेबाक चित्रण किया।

उक्त उद्गार मध्यप्रदेश लेखक सघ के तत्वावधान में आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह में वक्ताओं और अतिथियों ने व्यक्त किए। एक शाम प्रेमचंद के नाम शीर्षक से महेश नगर स्थित कृष्णा पब्लिक स्कूल के सभागार में आयोजित इस इस गरिमामय कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शिव चौरसिया ने की। अतिथि के रूप में कुलानुशासक डॉ शैलेन्द्र कुमार शर्मा, डॉ अरूण वर्मा, साहित्यकार डॉ देवेंद्र जोशी, वरिष्ठ कवि श्रीराम दवे आदि उपस्थित थे।

आरंभ में अतिथियों ने सरस्वती की प्रतिमा और प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।‌सरस्वती वंदना गीतकार कवियित्री सीमा जोशी ने प्रस्तुत की।इस अवसर पर बोलते हुए डॉ अरूण वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य सच्चे अर्थों में भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करता है।वे दलित, पलित, शोषित समाज और आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने वाले साहित्यकार थे।जिसकी उन्हें कीमत भी चुकानी पड़ी। डॉ शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद के कारण ही आज हमारा समाज समता मूलक समाज है। जिन संवैधानिक मूल्यों की विरासत पर आज भारत खड़ा उसकी बुनियाद प्रेमचंद ने ही रखी थी।

डॉ शिव चौरसिया ने कहा कि प्रेमचंद ही ऐसे पहले लेखक थे जिन्होंने भारत में उपन्यास और कथा साहित्य की धारा को जनोन्मुखी बनाया और समाज में व्याप्त कुरीतियों और अत्याचारों पर उपन्यास लेखन का शंखनाद किया। इससे पहले जो उपन्यास लिखे जा रहे थे वे तिलस्मी, सामंती सोच,अय्यारी और जादू टोना पर आधारित थे।‌ डॉ देवेंद्र जोशी ने कहा कि साहित्य हमेशा समाज को सही दिशा देता है। उन्होंने प्रेमचंद अगर आज तुम होते तो... शीर्षक से एक व्यंग्य कविता सुनाकर खूब दाद बटोरी। कवि श्रीराम दवे ने प्रेमचंद की कुछ सुक्तियों और कविताओं के माध्यम से अपनी बात कही। डॉ पिलकेंद्र अरोरा ने कहा कि आजादी के पहले के समाज को देखना हो तो प्रेमचंद को और आजादी के बाद के समाज को देखना हो तो हरिशंकर परसाई को पढ़ना चाहिए। गोपाल कृष्ण निगम और संतोष सुपेकर ने आलेख वाचन किया। 

डॉ हरीश कुमार सिंह ने चुटीला व्यंग्य सुनाया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि उज्जैन में प्रेमचंद पर ऐसी गरिमामय गोष्ठी वर्षों बाद देखने और सुनने को मिली जिसमें प्रेमचंद साहित्य पर बेबाकी से विचार विमर्श हुआ सुमन जी के समय ऐसे आयोजन हुआ करते थे। इसके लिए आयोजक बधाई के पात्र हैं। वक्ताओं ने दिवंगत साहित्यकार डॉ रामरतन ज्वेल और उनके प्रेमचंद के प्रति अनुराग को भी याद किया। इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में सुगन चंद जैन, डॉ रफीक नागौरी, प्रफुल्ल शुक्ला, माया वदेका, अनिल पांचाल, मानसंह शरद, रमेश चंगेसिया, प्रशांत माहेश्वरी ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। सुरेश यादव और डॉ एच एल माहेश्वरी सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन इस अवसर पर उपस्थित थे।‌संचालन डॉ देवेंद्र जोशी ने किया और आभार डॉ हरीश कुमार सिंह ने माना।

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