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वट वृक्ष की छाया है पिता -पदमचंद गांधी


पितृ दिवस भारतीय संस्कृति की देन नहीं है। यहां की संस्कृति में पिता ईश्वर का धरती पर भेजा हुआ संतान की छत्रछाया का रूप होता है। जिसकी प्रतिदिन पूजा की जाती है। फादर्स डे की शुरुआत 19 जून 1910 को अमेरिका के वॉशिंगटन में हुई थी जिसका कारण था सोनेरा डॉड नाम की बालिका। एक छोटी सी बच्ची जिसकी माता का देहांत बचपन में हो गया लेकिन पिता विलियम स्मार्ट ने उसके जीवन में कभी मां की कमी नहीं होने दी। एक वट वृक्ष की तरह शीतल छाया में उसका पालन पोषण किया। सोनेरो डॉड ने सोचा कि एक दिन पिता के नाम कर दिया जाए। उसे साकार रूप दिया अमेरिका के राष्ट्रपति केल्विन कोली ने 1924 में फादर्स डे पर अपनी सहमति दी तथा 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने जून माह के तीसरे रविवार को फादर्स डे की आधिकारिक घोषणा करके तथा 1972 में फादर्स डे को अवकाश घोषणा करके उसे साकार रूप दिया।

पिता पेड़ की एक जड़ की तरह होता है जो बिना कुछ कहे अपनी डालियों की रक्षा करता है। पिता पुत्र का संसार होता है ,वट वृक्ष होता है जो स्वयं तो तपता है लेकिन संतान को शीतल छाया देता है। संतान उस शीतल छांव में चिंता रहित एवं निश्चित रहती है। संरक्षण प्राप्त करती है। जिसका स्पर्श पाकर दुनिया का सबसे ताकतवर समझती है। संतान की सबसे बड़ी शक्ति, उसका आत्मविश्वास ,हिम्मत , हौसला तथा धीरज देने वाला उसका पिता ही होता है।

पिता वह होता है जो जीवन पर संघर्ष करते हुए संतान को हंसता देखना चाहता है। उसे आगे बढ़ता हुआ देखना उसका सपना होता है। फटी चप्पल पहनकर , पुरानी मोटरसाइकिल बेचकर, नए वस्त्र एवं नई मोटरसाइकिल देने में भी उसे खुशी मिलती है। पिता संतान के सपनों में पंख लगता है। संतान की तनिक आंच को भी स्वयं में महसूस करता है।

पिता वह होता है जो भीतर में गम छुपाता है लेकिन बाहर मुस्कुराता है। संतान की अंगुली पड़कर चलना सीखते हुए उसे मंजिल तक पहुंचने में अपना जीवन गुजार देता है। पिता वह होता है जो सबकी खुशियों को ध्यान में रखते हुए स्वयं के अरमानों का त्याग कर देता है। परिवार का सबसे भरोसेमंद व्यक्ति एक पिता ही होता है। पिता के बिना जीवन में कल्पना भी नहीं की जा सकती, पिता एक अनुशासन होता है जो बाहर से कठोर तथा अंदर से मुलायम होता है। पिता दुनिया को जीत सकता है लेकिन संतान से हार जाता है। जैसे राम लव -कुश से हार गए थे।

क्योंकि वह हार में भी जीत का अनुभव करता है पिता संतान के लिए एक उदाहरण होता है , आईना होता है क्योंकि संतान उसका प्रतिबिंब होती है ,उसका अनुसरण करती है। अतः पिता के आदर्श उच्च होते हैं। एक पिता सौ शिक्षकों से भी भारी होता है क्योंकि हर पल मुश्किलों का समाधान ढूंढता है। उसकी एक मुस्कान संतान के पूरे दिन को रोशन करने वाली होती है। पिता संतान से बहुत प्यार करता है, लेकिन जाहिर नहीं होने देता है।

पिता ही होता है तो संतान का सबसे अच्छा मित्र एवं दोस्त होता है जो समय-समय पर अच्छी और बुरी बातों को समझ कर बच्चों को सचेत, सावधान करता है ,उसके लिए एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़ा होता है। पिता हर बच्चे के लिए धरती पर ईश्वर का साक्षात रूप होता है। वह संतान को सुख देने में स्वयं का सुख भूल जाता है।

लेकिन पिता टूट तब जाता है जब वह सुनता है - "आपने मेरे लिए किया ही क्या है ? बच्चों को तो पशु पक्षी भी पाल लेते हैं। " हताशा एवं निराशा तब होती है जब संतान उससे अलग होती है। जब सहारे की जरूरत होती है उसे वृद्ध आश्रम छोड़ देते हैं। उसका सहारा टूट जाता है। उसके जीवन की हlर हो जाती है जिसमें वह हार में भी जीत का अनुभव नहीं कर पाता है।

अतः हमें इस फादर्स डे के ऊपर अपने पिता को समझना जरूरी है उनकी हर खुशी हमारी खुशी मानकर चलें यही फादर्स डे मनाने का हमारा उद्देश्य एवं हमारा संकल्प हो।

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