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गुड़ी पड़वा - नव-संवत्सर अभिनन्दनम् -पदमचन्द गाँधी


नव संवत्सर नव संकल्पों, स्वप्नों, आशाओं एवं उत्साह के जागरण का माध्यम है। नवीनता में नव प्रारम्भ का हर्ष है, कुछ करने की उमंग है। नव संवत्सर अतीत से सीख, वर्तमान के लिए सक्रियता एवं भविष्य के लिए उम्मीद लेकर आता है। यह कुछ श्रेष्ठ करने, उत्कृष्ट बनने व सार्थकता पाने की जिज्ञासा बनकर हृदय को झंकृत करता है। हिन्दू नववर्ष यानि चैत्र माह के प्रथम दिवस को नव संवत्सर या नववर्ष के रुप में जानते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार गुड़ी पड़वा का दिन सृष्टि की रचना के रुप में मनाया जाता है। इसकी मान्यता यह है कि इस दिन जगत पिता ब्रह्म ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसलिए इस दिन को नव संवत्सर भी कहा जाता है।

गुड़ी पड़वा की मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी घुसपेठियों को परास्त किया था तथा महाराष्ट्र के सभी घरों में विजयी पताका फहराई थी। आज भी यह परम्परा महाराष्ट्र में मनायी जाती है। इस दिन गुड़ी फहरायी जाती है। इसलिए इसको ‘गुड़ी पड़वा‘ के नाम से जानते हैं। शाब्दिक अर्थ के अनुसार गुड़ी-विजयी पताका तथा पड़वा का अर्थ है-प्रतिपदा! मान्यता यह भी है कि इस दिन राम ने दक्षिण के लोगों को बाली के अत्याचारों और शासन से मुक्त कराया था तथा इस दिन भगवान विष्णु एवं ब्रह्मजी की पूजा की थी इसलिए मान्यता यह भी है कि गुड़ी पड़वा के दिन बुराइयों का अन्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। आज भी विष्णु एवं ब्रह्म के पूजा की परम्परा है। इस दिवस को फसल दिवस का प्रतीक भी मानते हैं क्योंकि नई फसल घरों में आती है।

यह त्यौहार महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रुप में तथा कर्नाटक और आन्ध्रप्रदेश में ‘उगादि‘ के नाम से मनाया जाता है तथा सृष्टि के सभी देवताओं की पूजा करते हैं। हिन्दू लोग इस दिन गुड़ी का पूजन कर इसे घर के द्वार पर लगाते हैं और घर के दरवाजे पर आम के पत्तों की वन्दरवाल बाँधी जाती है जिससे सुख-समृद्धि और खुशियाँ आती हैं तथा नकारात्मकता दूर होती है। हिन्दू नववर्ष नये कार्य की शुरुआत का दिन माना जाता है। यह विजय और सुख-समृद्धि का प्रतीक है। नववर्ष में सबका भला हो इसलिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। गुड़ी पड़वा हिन्दू भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।

इस त्यौहार को हर्षोल्लास के रुप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में ‘पूरणपोली‘ तथा श्रीखण्ड, आन्ध्रप्रदेश में ‘पच्चडी‘ प्रसादम तीर्थ के रुप में वितरित किया जाता है। इस दिन नीम की पत्तियाँ खाई जाती हैं। इसके बाद गुड़ खाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम है तथा कड़वाहट को मिठास में बदलने का प्रतीक माना जाता है। घरों में रंगोली बनाते हैं, नव वस्त्र धारण करके भगवान की पूजा करते हैं। इस दिन प्रत्यक्ष सूर्य देवता के पूजन के बाद ‘गुड़ी‘ का विशेष पूजन किया जाता है।

इस दिन से भारतीय पंचांग अर्थात् हिन्दू कलेण्डर की शुरुआत होती है। पंचांग मनुष्य की प्रतिभा का चमत्कार है। हिन्दू पंचांग अंग्रेजी कलेण्डर से 57 वर्ष आगे चलता है अर्थात् नव संवत्सर 2081 इस दिन से प्रारम्भ होने वाला है। अंग्रेजी कलेण्डर 1 जनवरी से तथा हिन्दू पंचांग गुड़ी पड़वा से प्रारम्भ होता है। इस पंचांग से ज्योतिष शास्त्र की गणना की जाती है। इससे ग्रहों की स्थिति, वार, तिथि व सूर्य-चन्द्रमा की दशा या काम आने वाले दैनिक नित्य क्रम में प्रयोग होने वाले तिथि, वार, ग्रह, होरा, नक्षत्र, सूर्य की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी का घूर्णन व अपने अक्ष के ऊपर कितने समय में कितना समय होता है इन सबको काल गणना से दर्शाया जाता है। इसी आधार पर जन्म कुण्डली, लग्न कुण्डली एवं शुभकार्यों के मुहूर्त्त तय होते हैं तथा ज्योतिषी भविष्य का आंकलन भी करते हैं। इसी आधार से जीवन पर ग्रहों, नक्षत्रों के पड़ने वाले प्रभाव को देखा जाता है। जो अंग्रेजी कलेण्डर की तरह आधा अधूरा न होकर पूर्ण विश्वसनीय एवं प्रामाणिक होता है।

भारतीय कलेण्डर (पंचांग) की गणना सूर्य और चन्द्रमा के अनुसार होती है जबकि ग्रेगोरियन (अंग्रेजी) कलेण्डर की गणना पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के अनुसार चलता है जो 365.25 दिन का एक वर्ष तथा चार वर्ष में एक लीप इयर आता है। पंचांग के अनुसार बारह महीनों का (चैत्र से फाल्गुन) एक वर्ष तथा सात दिन का सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरु हुआ है। (विक्रम संवत् सम्राट् विक्रमादित्य से शुरु हुआ था।) महीनों का हिसाब सूर्य, चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राषियाँ बारह सौर मास है। पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चन्द्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घण्टे 48 पल छोटा होता है, इसलिए प्रत्येक 3 वर्ष बाद इन्हें जोड़ दिया जाता है जो अधिक मास के रुप में जाना जाता है।

इस प्रकार गुड़ी पड़वा हिन्दूओं का नव संवत्सर है। नये वर्ष की शुरुआत इस दिन से मानी जाती है। नव संवत्सर सभी के लिए मंगलमयी हो। भारतीय हिन्दू संस्कृति सर्वोच्चता को प्राप्त हो, ऐसी कामना का यह पर्व है।

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