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म. प्र. लेखक संघ की गीत गोष्ठी मे बिखरे गीतों के रंग


भोपाल । गीत कवि हृदय की रागात्मक अनुभूति की लयात्मक अभिव्यक्ति है" यह कहना था वरिष्ठ गीतकार यतीन्द्र नाथ राही का जो मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक गीत गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे । आपने कहा हमारे लोकगीत ही साहित्यिक गीतों के जनक हैं जिन्हें हमने कभी वात्सल्य में कभी श्रंगार में कभी ओज में तो कभी वैराग्य में गाया है । हर स्थिति में वे हमारे अभिन्न रहे हैं । गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वेदविद् संघ प्रभुदयाल मिश्र ने कहा कि गीत अभिव्यक्ति की आदि विधा है ।

जीवन के हर प्रसंग में गीत की भूमिका रही है । गोष्ठी के सारस्वत अतिथि ऋषि श्रंगारी का कहना था कि गीत लिखा नहीं जाता बल्कि जिया जाता है । गोष्ठी का संचालन राजेन्द्र गट्टानी एवं अशोक निर्मल ने किया । गोष्ठी में प्रदेश के विभिन्न अंचलों से आये गीतकारों ने अपने विविधवर्णी गीतों का पाठ किया । प्रारंभ में सरस्वती पूजन के उपरांत महेश सक्सेना ने स्वागत उद्बोधन दिया तथा अंत में सुनील चतुर्वेदी ने आभार प्रदर्शित किया ।

गीत गोष्ठी में रचनाकारों ने गीत वर्षा करते हुए सुनाया-

यतीन्द्र नाथ राही
तमस से संघर्ष करता गीत जलता है ।
आँधियों में नीड़ बुनता स्वप्न गढ़ता है ।
गीत लिखता है शिलाओं पर नये यशगान ।
जब कोई संकल्प युग की गति बदलता है ।

प्रेम बहूत कह चुकी शेष फिर भी है सारा
शब्दों में जीना होना कैसे संभव है
प्रेम नहीं फल प्राप्य एक यह क्रिया, समर्पण।

ऋषि श्रंगारी
मत करो आधी अधूरी साधना,
छंद साधो गीत का सर्जन करो।।
भावना की तूलिका से जो लिखो,
उस नये संवाद का अर्चन करो।।

अशोक 'निर्मल'
कई दिनों के बाद हृदय के हर सिंगार खिले ।
कई दिनों के बाद लगा हम पहली बार मिले ।

प्रभु शंकर शुक्ल
पीड़ाओं का जहर पिया इतना
कि सारा तन घनश्याम हो गया।
विवशताओं ने झुलसाया इतना
कि मन कुन्दन अभिराम हो गया।।

विजय बागरी
भटक रहा
युगबोध अपाहिज
कुंठाओं के कंटक वन में।

राज गोस्वामी
धीरे-धीरे डिग्री डिग्री पारा चढ़ाअहा ।
सड़कों पर सन्नाटा छाया सूरज अकड़ रहा ।।

प्रेम चन्द गुप्ता
मैं फिर मधुमय गीत लिखूंगा
मधुऋतु के सुगन्ध से सुरभित,
एक पाती मनमीत लिखूँगा।

शेखर वत्स
जाना कहाँ, कहाँ से आये हैं हमको बतला दो
भटक रहे हैं भ्रम में, माँ तुम मार्ग हमें दिखला दो

डाॅ प्रतिभा द्विवेदी
रात के आंचल से मैं, ओस सी झरती रहूं
तुम दिवाकर से उगो और साथ अपने ले चलो

पूजा कृष्णा
चंद बातों से शुरू हो सिलसिला बढ़ता गया।
प्यार वाला रंग दोनों ही तरफ चढ़ता गया।

संतोष सोनी
विश्व रंग मंच पर, क्या ! उमंग रेल है ।
उस अनंत ब्रह्म का, क्या !अनंत खेल है ।

अभिषेक जैन 'अबोध'
गीत लिखता रहा, फिर मिटाता रहा।
एक तस्वीर, दिल में, बनाता रहा।।

पंकज जैन 'पराग'
जग मे हैं संत्रास इतने कैसे फ़िर मैं मुस्कुराऊँ ?
वेदना के स्वर मुखर हैं कैसे फ़िर मैं गीत गाऊँ ?

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