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मजदूर दिवस का इतिहास -दमनजीत सिंह


मजदूर दिवस प्रथम मई के दिन, शहीद हुए उन श्रमिकों की याद में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है जिन्होंने उचित सेवा शर्तों, शोषण, दमन तथा मानवोचित अधिकारों की प्राप्ति के लिए एक लम्बा निर्णायक संघर्ष किया था। इस दिन मजदूर अपनी उस संगठिन शक्ति को याद करते हैं जिसके बल पर उन्होंने अनेक उपलब्धियां अर्जित की है। 

आज का श्रमिक सामान्यत: सात-छह घंटे काम करता है लेकिन पहले श्रमिक 10 से 14 घंटे तक काम करने पर मजबूर थे। ऐसे में श्रमिकों का वेतन भी और सुविधाएं भी कम होती थी। श्रमिक सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से इतने अधिक पिछड़ गये थे कि वे ना तो अपने बच्चों की सुध ले सकते थे ना ही उनका भरण-पोषण भलीभांति कर सकते थे। फलस्वरूप श्रमिकों को संघर्ष के लिए बाध्य होना पड़ा व प्रथम मई 1447 को संघर्ष का बिगुल बजा दिया गया, जिस कारण अमरीका के औद्योगिक शहर शिकागो में कुछ श्रमिक पुलिस की गोली का शिकार हुए व सैकड़ों घायल हुए। बहुत से श्रमिकों को जेलों में ठूंस दिया गया व कई श्रमिक नेताओं पर हत्या के मुकदमे चलाये गये जिन्हें अंत में फांसी की सजा हुई। इस खूनी संघर्ष ने विश्व भर के मजदूरों को भी संघर्ष के लिए प्रेरित किया। 

अंतत: सच्चाई की जीत हुई व श्रमिक आठ घंटे के कार्य दिवस को अपनी मांग हासिल करने में सफल हुए। सन् 1914 में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के जिनेवा में हुए प्रथम अधिवेशन में भी यह प्रस्ताव पारित किया गया कि सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यावधि अधिक से अधिक 8 घंटे निर्धारित हो। श्रम संबंधित अन्य अनेक शर्तों को भी शब्दबद्ध किया गया। दुनिया भर के मजदूर इसी उपलक्ष्य में प्रथम मई के दिन को मई दिवस के रूप में मनाते हैं। यह तारीख आज भी श्रमिकों के लिए प्रेरणा स्त्रोत के रूप में काम करती है। (विनायक फीचर्स)

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