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अशोक वक्त के श्रद्धांजलि समारोह में वक्ताओं ने उन्हें श्रद्धा पूर्वक याद किया


उज्जैन । व्यक्ति के जीवन का आकलन पद से नहीं कद से होना चाहिए कम से कम साहित्यिक बिरादरी में तो इसकी उम्मीद की ही जा सकती है ‌। राजनीति, प्रशासन और विश्वविद्यालय आदि क्षेत्र में जहां पद की प्रतिष्ठा को अति महत्व दिया जाता है वहां किस तरह पद से उतरते ही व्यक्ति को तुरंत भुला दिया जाता है इससे सभी भलीभांति परिचित है।। ऐसे में वरिष्ठ साहित्यकार, रंगकर्मी और कला समीक्षक अशोक वक्त एक मिसाल है जो भले ही किसी बड़े पद पर ना रहे हो लेकिन उनका कद इतना ऊंचा था कि वह निराला नागार्जुन मुक्तिबोध अज्ञेय और सुमन जी जैसे साहित्यकारों पर उज्जैन में बैठकर चिंतन मनन और विचार विमर्श किया करते थे। -उक्त उद्गार वक्ताओं ने साहित्यकार श्री अशोक वक्त को याद करते हुए व्यक्त किये।

नगर की साहित्यिक संस्थाओं की ओर से आयोजित संयुक्त श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता डॉ हरिमोहन बुधौलिया ने की। इस अवसर पर बोलते हुए डॉक्टर शिव चौरसिया ने कहा कि स्मरण व्यक्ति का नहीं उसके कार्यों का होता है । व्यक्ति के कर्म ही उसे विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति बनाते हैं। भाई अशोक वक्त ने कम समय में इतने अधिक कार्य किये है कि उनकी गिनती कर पाना संभव नहीं है। वह जितने बड़े कवि साहित्यकार थे उससे कहीं बड़े इंसान थे। वरिष्ठ लेखक पंडित राजशेखर व्यास ने इस अवसर पर कहा कि अशोक जी उच्च कोटि के वक्ता, लेखक और समीक्षक थे। कला समीक्षा के क्षेत्र में राहुल बारपुते के बाद अशोक वक्त ही एक ऐसा नाम था जिन्होंने समीक्षा के क्षेत्र में मध्य प्रदेश की पहचान संपूर्ण देश में स्थापित की। वे इतने अच्छे वक्ता थे कि यदि दिल्ली में होते तो देवकीनंदन पांडे की तरह राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करते। विक्रम विश्वविद्यालय में उनके नाम पर एक वाद - विवद स्पर्धा शुरू की जानी चाहिए । रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक शरद शर्मा ने कहा कि अशोक वक्त ने अपने आरंभिक दिनों में रंगकर्म के जो प्रयोग शुरू किए थे आज उज्जैन की समृद्ध रंगकर्म परंपरा उसी के इर्द-गिर्द घूम रही है। उनकी समीक्षाएं उच्च कोटि की सधी हुई और परिष्कृत होती थी। उनमें नाट्य और कल कर्म की गहरी समझ थी। सेवा धाम आश्रम की सुधीर भाई ने कहा कि सुमन जी से मेरा परिचय अशोक वक्त ने ही करवाया था। उनके जरिए ही मुझे सुमन जी का निकट सानिध्य प्राप्त हुआ। वे साफ दिल के स्पष्ट वादी इंसान थे। वरिष्ठ व्यंग्यकार शांतिलाल जैन ने इस अवसर पर सुझाव दिया कि हिंदी के पाठकों और प्रबुद्ध समाज के लोगों को ऐसी विभूतियां के स्मरण कार्यक्रम हेतु आगे आना चाहिए जिन्होंने अपनी रचनात्मकता से समाज को कुछ दिया है । उनके स्मरण कार्यक्रम पाठकों और कला रसिकों को करना चाहिए। इसका बोझ परिवार जनों पर नहीं डाला जाना चाहिए। आलोक मेहता, और डॉ अरविन्द दशोत्तर का संदेश भी कार्यक्रम में पढ़ कर सुनाया गया।

कार्यक्रम को डॉक्टर पिलकेंद्र अरोड़ा, संतोष सुपेकर, डॉक्टर पंकजा सोनवलकर, आशीष श्रीवास्तव, डॉ उर्मि शर्मा, डॉ श्रीकृष्ण जोशी, हरिहर शर्मा, शशि भूषण और अशोक भाटी आदि ने भी संबोधित किया। परिवार की ओर से सीमा जोशी और डॉक्टर पांखुरी वक्त ने गीत कविताओं के माध्यम से अशोक वक्त को याद किया। सरस्वती वंदना डॉक्टर राजेश रावल ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम में डॉक्टर क्षमा सिसौदिया, डॉ अनुभव प्रधान, प्रफुल्ल शुक्ला, प्रभु चौधरी, कैलाश नारायण व्यास, संदीप सृजन, वाणी जोशी, डॉ प्रकाश कडोतिया, डॉ रफीक नागौरी श्री तिवारी, अनिल पांचाल, नईम कुरैशी डॉक्टर प्रभाकर शर्मा, दिलीप जैन, प्रतीक सोनवलकर, श्री करंदीकर सहित बड़ी संख्या में गणमान्य जन और परिजन उपस्थित थे। पुष्पांजलि से शुरू हुआ आयोजन 2 मिनट के मौन के साथ संपन्न हुआ। संचालन म प्र लेखक संघ के सचिव डॉक्टर देवेंद्र जोशी ने किया आभार आर पी तिवारी ने माना।

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