कृष्णा गाँव के विद्यालय में पढ़ती थी। उसने कक्षा दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। अब आगे पढ़ाई करने के लिए उसे शहर में जाना था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उसकी माँ उसे आगे पढ़ाई करने के लिए शहर नहीं भेज सकती थी। उसके पिताजी का देहांत पहले ही हो चुका था। परिवार में वह और उसकी माँ ही थी। उसकी आगे पढ़ने की इच्छा बहुत थी, परन्तु वह विवश थी। पढ़ाई छूट जाने के कारण अब वह माँ के काम में हाथ बँटाने लगी। थोड़ी सी जमीन थी। उसमें वे सब्जियाँ लगा लेती ,खाने को अनाज कर लेती।
एक दिन कृष्णा अपने खेत में काम कर रही थी, तो उसे खेत की मेड़ पर कुछ चमकती वस्तु दिखाई दी। उसमें से नीला प्रकाश निकल रहा था। पास जाकर उसने देखा वह तो एक सुन्दर अँगूठी थी। उसने कोतुहलवश उसे उठा लिया। उसमें से चमकते नीले प्रकाश को देख कर उसके मुँह से अचानक निकल पड़ा नीलम। ऐसा कहते ही एक सुन्दर परी उसके सामने खड़ी हो गयी। उसके हाथ में नीले रंग की छड़ी थी। उसने कपड़े भी नीले ही पहन रखे थे। कृष्णा ने परियों की कहानियाँ अपनी माँ से सुन रखी थी। उसने सोचा शायद यह कोई परी ही हो।
परी ने कहा “बोल कृष्णा तुझे क्या चाहिए?” “मैं तेरी क्या सहायता कर सकती हूं? "
“मैं शहर में जाकर आगे पढ़ना चाहती हूँ। मेरी माँ के पास रुपए नहीं होने से वह मुझे पढ़ने के लिए शहर नहीं भेज सकती। बताओ मैं क्या करूँ।" कृष्णा ने कहा।
“तू चिंता मत कर मैंने तेरी सहायता के लिए ही यह अँगूठी तेरे रास्ते में डाली थी। तू इसे अपने पास में रख।“ “तुझे जब भी मेरी सहायता की आवश्यकता हो ,तू मुझे बुला लेना मैं तुरंत आ जाउंगी।" “और हाँ तेरे पढ़ाई की व्यवस्था हो जायेगी।" ऐसा कह कर नीलम परी अदृश्य हो गयी।
कृष्णा घर लौटी तो उसकी माँ ने उससे कहा “बेटी कुछ देर पहले यहाँ एक औरत आयी थी। उसने यह लिफाफा दिया और कहा कि इसे कृष्णा को दे देना।"
कृष्णा ने उसे खोल कर देखा तो उसमें बहुत सारे रुपये थे। और एक पत्र भी था। जिसमें नीचे नीलम लिखा हुआ था। कृष्णा समझ गयी यह नीलम परी ही देने आयी होगी।
उसने अपनी माँ से कहा। “माँ मेरी पढ़ाई के लिए किसी ने रुपये भेजे हैं।"
कृष्णा आगे पढ़ाई करने के लिए शहर चली गयी। मन लगाकर उसने पढ़ाई की। जब भी उसे कुछ सहायता की आवश्यकता होती वह नीलम परी को याद कर लेती। कृष्णा अब डाक्टर बन चुकी थी। उसने शहर में अपना क्लीनिक भी खोल दिया था। वह अपनी माँ को भी अपने पास ले आयी थी।
एक रात नीलम परी ने कृष्णा के पास आकर उसे नींद से जगाया और बोली “कृष्णा मेरा काम पूरा हो गया। मेरी अँगूठी अब मुझे लौटा दो।“
तुम गरीब और असहाय व्यक्तियों का ईलाज नि:शुल्क करना। गाँव में जो बालक रुपयों के अभाव में पढ़ने में असमर्थ हों उनकी सहायता करना।“ ऐसा कह कर नीलम परी वहाँ से चली गयी।
कृष्णा अपने क्लीनिक में निर्धन व्यक्तियों का ईलाज नि: शुल्क करने लगी है। उसने शहर में ही बालिकाओं के लिए एक छात्रावास भी बना दिया है। जिसमें गाँव से आयी लड़कियाँ शहर में शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।क्लीनिक और छात्रावास का नाम कृष्णा ने परी के नाम पर नीलम छात्रावास रखा है।
-टीकम चन्दर ढोडरिया, छबड़ा जिला बाराँ
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