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मुहूर्त (लघुकथा) -डॉ रघुराज सिंह 'कर्मयोगी'

चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था। सांसें अटक अटक कर चल रही थीं। मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया।दिल बेचारा था कि वह स्वयं को व्यवस्थित नहीं कर पा रहा था।डॉक्टरों ने निर्णय लिया कि ऑक्सीजन मास्क हटाना ही उचित है।आत्मा पहले ही संसार से विदा ले चुकी थी। इसलिए रोगी को अस्पताल में रखने का कोई औचित्य नहीं है। अंततः डॉक्टर ने जवाब दे दिया।
"आप इन्हें घर ले जाइए। अस्पताल से डिस्चार्ज प्रपत्र पर मैंने आदेश कर दिए हैं। नर्स इनका ऑक्सीजन मास्क हटा दो"।

उक्त वचन पुत्र पंकज ने सुने तो वह तपाक से बोला -"डॉक्टर साब,इनका ऑक्सीजन मास्क लगा रहने दीजिए।मैं पिताजी को आज घर नहीं ले जा पाऊंगा"।

"घर ले जाने में क्या दिक्कत है? हमारे यहां शव को अस्पताल में रखने का कोई नियम नहीं है"- डॉक्टर ने कहा तो पंकज बोला - "शव घर ले जाने के लिए हमने मुहूर्त निकलवाया है। जो दो दिन बाद का है।तब तक पिताजी को आप अस्पताल में ही रहने दें"।

"उपचार के लिए आए हुए मरीजों को ही हम अस्पताल में रख सकते हैं,न कि किसी व्यक्ति के शव को। कृपा करके इन्हें घर ले जाइए और दाह संस्कार का कार्यक्रम संपन्न कीजिए"।

"डॉक्टर साहब,भगवान के लिए मेरी बात मान लीजिए।दो दिन अस्पताल में रखने की अनुमति दें। जीवन भर आपका कृतज्ञ रहूंगा। आपको जितना पैसा चाहिए, दूंगा"।

"ऐसा नहीं होता है श्रीमान। हमें पलंग खाली करना है। आप सामने देख रहे हैं। और भी तो मरीज हैं। जिन्हें पलंग चाहिए।आपको मुहूर्त की पड़ी है" - डॉक्टर ने कहा। अब उनके माथे की रेखाएं गहरी होती जा रही थी। डॉक्टर ने नर्स की ओर अपनी दृष्टि का कोण दिया। नर्स संकेत समझ गई।उसने ऑक्सीजन मास्क हटा दिया। पंकज गुस्से में पैर पटकता हुआ आईसीयू से बाहर निकल आया।

-डॉ रघुराज सिंह कर्मयोगी,कोटा जं.

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