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मुखौटे (व्यंग्य) -दीपा पटेल


इतनी आँखें नहीं है, दुनिया में जितने चेहरे है, तेरे चेहरे में, हम तुझे देख ही नहीं पाए, इतनी नजरें थी तेरे चेहरे पर...आजकल के दौर में जहाँ किसी को किसी के साथ बैठने या किसी के साथ कुछ समय बिताने तक का वक्त नहीं है उस दौर में हर किसी के पास मुखौटे लगाने का समय बहुत हैं। मुखौटों से मेरा मतलब समझ गये होंगे शायदएक वक्तित्त्व और उसके किरदार अनेक है...आज के समय में जहाँ व्यक्ति विभिन्न अवसरों पर जाने के लिए अपनी पोशाकों को बदलता रहता है, उसी तरह अपने मुखौटे भी अवसरों के अनुसार परिवर्तित करता रहता है और उनके स्तरों की बात करें तो देखकर बड़ा आश्चर्य होता हैं -उच्च, मध्यम और निम्न स्तर के मुखौटे.. जहाँ जैसा अवसर व स्थिति देखा वहाँ उसी के अनुसार मुखौटा बदल लिया। आजकल की इस मुखौटे वाली दुनिया में असली चेहरे को पहचानना अत्यंत ही कठिन है । मेरा मानना है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो लेकिन कभी भी उनके अनुसार झूठ, फरेब और दोहरे चरित्र के मुखौटे तो नहीं ओढ़ने चाहिए। एक अच्छे व्यक्तित्व की पहचान अलग ही होती है वे अवसर को देखकर किसी को गिरा कर स्वयं को श्रेष्ठ बनाने के लिए कोई मुखौटों का प्रयोग नहीं करते हैं और सही मायनों में आज के समय इस मुखौटों वाली दुनिया से निकलकर एक किरदार में रहना ही सही है, हाँ ये बात जरूरी है कि परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहना चाहिए लेकिन एक अच्छे और श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले मुखौटे के साथ... इन दिनों फकत मुखौटे लगाए हर कोई अदाकार हैं, आख़िर किसको अपना माने, न जाने कितने यहाँ किरदार हैं।

-दीपा पटेल,उन्नाव उत्तर प्रदेश

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