मौसम भी है बे-मौसम (ग़ज़ल) -यशवंत दीक्षित
खुशियां हो या होवे ग़म.
सूख रहे दिल के मौसम.
चल जाए कब कैसी हवा
मौसम भी है बे-मौसम.
बन जाती राहें आसान
हिम्मत का धरकर परचम.
ज़ीस्त की हर शै पर यारों
ज्वाला और कहीं शबनम.
लालच-लोभ नहीं जिसमें
बढ़ता रहता ख़ुद के दम.
स्वप्न -यादों में खोए तो
आंखें बन जाती अलबम.
शब्द सही निकलेंगे 'दीक्षित'
लिखती जब बेबाक क़लम.
-यशवंत दीक्षित,नागदा
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