कमाना बहुत हुआ (ग़ज़ल) -हमीद कानपुरी
साधो न बार बार निशाना बहुत हुआ।
दुनिया को बेवकूफ़ बनाना बहुत हुआ।
दुश्मन को यार धूल चटाना बहुत हुआ।
नफ़रत का राग रंग पुराना बहुत हुआ।
जीवन को ठीक ढंग से आओ ज़रा जियें,
दौलत को भाग भाग कमाना बहुत हुआ।
बाहर निकलके धूप की गर्मी भी कुछ सहो,
कमरे में बैठ बात बनाना बहुत हुआ।
तहरीर में बदलने की आदत भी डालिये,
यूँ चीख़ चीख़ बात उठाना बहुत हुआ।
-हमीद कानपुरी, कानपुर
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