हमने युगों-युगों से गाया मानवता का राग ।।
चाहे जैसी विपदा आई ,
हम उससे निर्भय टकराए ।
हमने बंजर धरती पर भी ,
उम्मीदों के फूल उगाए ।
अपनी जिजीविषा से डरकर काल गया है भाग ।
हमने युगों-युगों से गाया मानवता का राग ।।
एक साथ मिल करके हमनें ,
मुश्किल बाज़ी को जीता है ।
धैर्य और साहस का अपने -
पात्र कभी नहीं रीता है ।
आंखों में करुणा सीने में भरते आये आग ।
हमनें युगों-युगों से गाया मानवता का राग ।।
हम भारतवासी हैं हमने ,
गीत प्रेम के अविरल गाये ।
गले लगाने को आतुर हैं-
सबके लिए बांह फैलाये ।
नफरत जो फैलाते उनको भी बांटा अनुराग ।
हमने युगों-युगों से गाया मानवता का राग ।।
हम पीड़ा में हंसे जोर से ,
और खुशी में आंखें नम हैं ।
हम जोगी-अवधूत हमारे -
लिए जगत के वैभव कम हैं ।
हम मरघट में भस्म उड़ाकर खेला करते फाग ।
हमने युगों-युगों से गाया मानवता का राग ।।
-डॉ दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
ग्राम-अदलबारी,बक्सा, असम
ग्राम-अदलबारी,बक्सा, असम
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