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तुम अगर हो राग दीपक (ग़ज़ल) - डॉ अनिल जैन


गुनगुनायें लोग जिनको लिख रहा अशआर हूँ
जोड़ता है जो दिलों को बाँटता मैं प्यार हूँ

है तुम्हारे दम से रौनक और जीवन में बहार
तुम कृपा की महती मूरत, मैं महज आभार हूँ

रूठ कर जाओगे कैसे, मैं मना लूँगा तुम्हें
तुम अगर हो राग दीपक, राग मैं मल्हार हूँ

जी न पाऊँगा मैं तुम बिन, कैसे जी पाओगे तुम?
तुम अगर हो दिल की धड़कन, साँस का मैं तार हूँ

मशवरों की आपने दीवार ही कर दी खड़ी
मैंने तो यूँ ही कहा था, आजकल बीमार हूँ

फड़फड़ा कर पंख नन्हे, माँ से चूजे ने कहा
आसमाँ छूने को अब मैं हो गया तैयार हूँ

-डॉ अनिल जैन, सागर

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