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विकास ही सर्वोपरि हो ध्येय (गीतिका) -आकुल


चौपालों पर ही क्‍या हरसू, सत्‍ता की ही बात।
क्‍या देगी सरकार अनोखी, हम सबको सौग़ात।।

रोज़गार के करवाएगी, अवसर क्‍या उपलब्ध,
राग अलापेगा कश्‍मीर का’, क्‍या विपक्ष दिन-रात।।

आरक्षण का मुद्दा क्‍या फिर, गरमाएगा ख़ूब,
फेना जैसा क़ह्र न बरपे, हे प्रभु इस बरसात।।

मीटू, भ्रष्‍टाचार सहित क्‍या, कम होंगे दुष्‍कर्म,
जनसंख्‍या क़ाबू होगी या रोकेंगे जज़्बात।।

स्‍मार्ट बनेंगे शहर सफ़ाई, से चमकेगा देश,
पशुधन, गोवंशों की हालत, भी सुधरेगी स्‍यात।।

मिले उपज का उचित मूल्‍य ऋण, सुविधा हों भरपूर,
तभी गाँव के हर किसान के, बदलेंगे हालात।।

बात देश की हो विकास ही, सर्वोपरि हो ध्‍येय,
सज़ा वही हो भितरघात की, सरहद पर ज्‍यों घात।।

-गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल', कोटा

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