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आशिक़ हो जाने का मतलब (ग़ज़ल) -प्रदीप ध्रुव भोपाली


आशिक़ हो जाने का मतलब,आवारा हो जाना है
चाहत जिसकी उसका,सारा का सारा हो जाना है

आशिक़ होते पर उनकी तो,महफ़िल हो ये ना मुमकिन,
दर्द बताएं क्यूँ,दिल मीठा या खारा हो जाना है

चाहत का तूफ़ान उठे जब,मिल जाए जो चाहत में,
होगा शाद,मगर दिल को,वो प्यारा हो जाना है

टूटेगा दिल,यार वफ़ा के नाम फ़रेबी ग़र होगा,
कोई वफ़ा मिल जाए,आंखों का तारा हो जाना है

दिल है मोम नहीं तोड़ो,यूँ आसानी से सहलाओ,
मत सोचो ये जान गंवा के छुटकारा हो जाना है

आशिक़ की राहों में ज़िल्लत,इश्क़ मगर आसान नहीं,
कितने रोज़ हुआ करते,वो बेचारा हो जाना है

कहते हैं सब,प्यार वफ़ा ये,झूठी बातों में आ के,
दिल टूटेगा आखिर,दर दर का मारा हो जाना है

-प्रदीप ध्रुव भोपाली,भोपाल

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