जले थे दीपक वहाँ अनेक
मुन्नी बैठी पिंजरे पास
कोई नहीं था उसके पास
पिंजरे में था तोता बंद
नाम था उसका हीरक चंद
हीरक चंद था बड़ा उदास
पिंजरा लगता कारावास
उड़ता मैं भी दूर आकाश
स्वच्छ समीर में लेता श्वास
बगिया बनती निजी आवास
मैना कोकिला होती पास
करता निरन्तर यही विचार
कोई खोलदे मेरे द्वार
मुन्नी गयी थी सब पहचान
दु:ख का कारण और निदान
बिना समय किये वह बर्बाद
तोते को कर गयी आजाद
हर्षित वह उड़ गया आकाश
-टीकम चन्दर ढोडरिया, छबड़ा (राजस्थान)
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