क्या त्रेतायुग में भगवान राम का अवतरण केवल रावण और राक्षसों के वध के लिए ही हुआ था? इस प्रश्न का उत्तर कई लोग हां में दे सकते हैं पर इस सवाल का सही उत्तर यही है कि भगवान राम के अवतरण के अनेक कारणों से एक कारण यह भी था। राम अवतार की अनेक कथाएं हमें पढऩे को मिलती हैं, जैसे मनु और शतरुपा को दिए गए वरदान के फलस्वरूप वे अवतरित हुए, नारद द्वारा स्त्री वियोग के शाप के कारण उन्हें अवतार लेना पड़ा। देवी-देवताओं तथा पृथ्वी की प्रार्थना के फलस्वरूप वे जन्में। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने भी इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कहा है-
राम जन्म कर हेतु अनेका
राम के अवतार की अनेक कथाएं तो मिलती ही हैं, उनका जीवन भी विभिन्न दृष्टियों से देखा गया। एशिया में राम की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। भारत की हर भाषा में राम की कथा किसी न किसी रूप में मौजूद है। काव्यों में ही नहीं लोककथाओं में भी राम का जीवन वर्णित किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास भी संभवत: इसी तथ्य से परिचित थे, इसलिए उन्होंने लिखा- रामायण सत कोटि अपारा।
राम की कितनी ही कथाएं, लोक गाथाएं प्रचलित हों या लुप्त हों, राम पर कितने ही काव्य, महाकाव्य एवं ग्रंथ लिखे गए हों, इनमें राम के जीवन के किसी भी पहलू पर प्रकाश डाला गया हो, पर एक बात सभी कथाओं और काव्यों में समान है, और वह यह कि उनके जीवन का हर पक्ष आदर्श था। उन्होंने ये आदर्श एक साधारण मानव के रूप में, पुत्र के रूप में, एक भाई के रूप में, युवराज के रूप में, राजा के रूप में, धर्मरक्षक के रूप में तो निभाए ही, वे एक आदर्श एवं नीति पालक शत्रु के रूप में भी वे लोक मानस में स्थापित हैं।
राम का धर्मरक्षक स्वरूप तो सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। ताड़का, खरदूषण से लेकर रावण तक का वध उन्होंने धर्म रक्षा के लिए ही किया। इस धर्मरक्षा के प्रति उनका आदर्श यही था कि सबको अपना-अपना धर्म एवं सिद्धांत मानने का अधिकार है। किसी को वह धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता, जिसे वह मानने के लिए स्वेच्छा से तैयार नहीं हो। दूसरे धर्म के मानने वालों की धार्मिक मान्यताओं में व्यवधान डालने का भी किसी को कोई अधिकार नहीं है। रावण वध तो भगवती सीता के अपहरण के अपराध के कारण हुआ था, पर उससे कई वर्षों पूर्व गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पर भगवान राम ने ताड़का वध क्यों किया था तथा पृथ्वी को निशाचर विहीन करने की प्रतिज्ञा क्यों की थी? सिर्फ इसीलिए कि राक्षस, ऋषि मुनियों के यज्ञों का विध्वंस करते थे तथा प्रतिकार करने वाले ऋषि मुनियों का वध कर देते थे। एक आदर्श पुत्र के रूप में राम के बारे में सभी जानते हैं कि खाने-खेलने के दिनों में वे पिता की आज्ञा से विश्वामित्र के साथ राक्षसों के विनाश के लिए वन चले गये थे। दूसरी बार भी राजतिलक के ऐेन मौके पर पिता की आज्ञा से वन गमन किया। चौदह वर्ष का वनवास उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। वनवास में भी वे धर्म-संरक्षक के रूप में कार्यरत रहे। रावण द्वारा सीता का अपहरण करने के बाद भी वे एक नीतिपालक शत्रु होने का परिचय देते हैं। वानरों और रीछों की भारी सेना होने के बाद भी वे लंका पर एकाएक आक्रमण नहीं करते हैं, बल्कि रावण को समझाने के लिए अंगद को भेजते हैं। इस सबके बीच वे एक आदर्श मानव का परिचय देते हुए सामाजिक समरसता का भी संदेश देते हैं। शबरी के जूठे बेर खाना, भील-निषादों के प्रति सहृदयता दिखाना तथा वानरों को अपना मित्र बनाने एवं उन्हें बंधु के समान मानना भी एक आदर्श मनुष्य के गुण हो सकते हैं। नीतिपालक शत्रु के रूप में उन्होंने जहां मेघनाद की पत्नी सती सुलोचना को आदर दिया, वहीं उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को रावण से राजनीति की शिक्षा लेने का परामर्श दिया। साधारण पुरुष के रूप में उन्होंने परनारी सम्मान का भी संदेश दिया। राजा के रूप में तो राम का चरित्र अतुलनीय है। उनका राज्यकाल रामराज्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जिसमें सर्वत्र सुख और शांति थी, जनता को कोई पीड़ा दु:ख या शोक नहीं था। राम ने एक राजा के रूप में इस आदर्श का भी परिचय दिया कि वे साम्राज्यवादी नहीं प्रजापालक थे।
बालि के वध के बाद सुग्रीव को राज्य सौंपना तथा रावण के वध के बाद विभीषण को लंका सौंप देना, इसका प्रमाण है कि अपना साम्राज्य बढ़ाने की उनकी कोई लालसा नहीं थी, बल्कि वे अपनी प्रजा के तथा प्राणियों के कल्याण की ही भावना रखते थे। एक राजा के रूप में उनका यह आदर्श था कि एक साधारण व्यक्ति के कथन को महत्व देते हुए उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सीता को वनवास दे दिया था फिर भी वे एक पत्नीव्रती ही बने रहे। वस्तुत: राम का जीवन इतना व्यापक प्रेरणादायी है कि उनके जीवन का हर अंश कहीं न कहीं आदर्श उपस्थति कर देता है। आदर्श पुत्र, भाई, शासक और धर्मरक्षक के अलावा वे समाज में समरसता के संवाहक, शरणागत वत्सल, करुणा के सागर, श्रेष्ठ मित्र, दृढ़ संकल्पी के रूप में भी प्रेरणा देते हैं। ऐसा नहीं है कि भारतीय जनमानस राम के आदर्श स्वरूप से परिचित नहीं है। भारतीय जनमानस में राम कितने रचे बसे, हैं, इसके लिए उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं है। हम जब कष्ट में होते हैं तो राम कहकर ही भगवान का स्मरण करते हैं।
दो लोग जब मिलते हैं तो राम-राम ही कहा जाता है। राम के लोकमानस के रचे बसे होने का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि मनुष्य की अंतिम यात्रा में भी राम नाम सत्य के रूप में राम का और उनके नाम का ही स्मरण किया जाता है। राम के अवतरण के बाद सदियांं बीत गयीं, पर उनकी कथा और उनके आदर्शों से हम आज भी परिचित हैं। भले ही हम आदर्शों और सिद्धांतों पर चल नहीं रहे हों, पर हर एक क्षण में आशा की यह क्षीण किरण रहती ही है कि कभी न कभी राम के यह आदर्श इस धरती पर अवश्य ही अवतरित होंगे। आशा की यही क्षीण किरण आज भी भारतीय संस्कृति के लिए आदर्श बनी हुई है।
-दिनेश चंद्र वर्मा
(विनायक फीचर्स)
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