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बच्चा,बेच रहा है खिलौने (नवगीत) -अशोक आनन


बच्चा -
खेल नहीं रहा है ;
वह -
बेच रहा है खिलौने ।

उनसे खेलने के दिन थे ।
जो लड़कपन-से अभिन्न थे ।
खेलने के अब वे ही दिन -
उसके , खिलौनों से बिन थे ।

सपने -
देख नहीं रहा है ;
वह -
बेच रहा है सलौने ।

जबसे मेला वह गया है ।
बचपन उसका गुम गया है ।
लेकर भूख़ वह लौटा है -
पेट उसी से रम गया है ।

सोकर -
देख नहीं रहा है ;
वह -
बेच रहा है बिछौने ।

खेलना वह भूल गया है ।
मज़बूरी क़बूल गया है ।
बेरहम मौसम के हाथों -
कठपुतली-सा झूल गया है ।

लगाके -
देख नहीं रहा है ;
वह -
बेच रहा है दिठौने ।

पौध था वह, पेड़ हो गया ।
खेत की वह मेड़ हो गया ।
किस्मत के खा-खा थपेड़े -
ख़ुद ही वह थपेड़ हो गया ।

मथकर -
देख नहीं रहा है ;
वह -
बेच रहा है बिलोने ।

-अशोक आनन,मक्सी

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