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वास्तविक राजनीति (व्यंग्य) -ललित भाटी


जहां से पार्टी मुझे आदेश देगी, मैं वहीं से चुनाव लडूंगा। 

वास्तविकतालेकिन अपनी पसंद की जगह से चुनाव लड़ने के लिए, अंतिम दम तक संघर्षरत रहूंगा। 

मुझे पार्टी हाईकमान का प्रत्येक आदेश शिरोधार्य होगा।

वास्तविकताचुनाव में, मनचाहा आदेश नहीं मिलने पर पार्टी छोड़ भी सकता हूं।

चुनाव जीतने पर, अपना समूचा समय जनता की सेवा में लगाऊंगा।

वास्तविकता- हां, अपनी भारी व्यस्तता में से कुछ समय निकालकर, पांच वर्षों में, एक बार तो, मतदाता के दरवाजे पर जरूर जाऊंगा। यह मेरा एकदम पक्का वादा है।


गरीबी दूर करना भी, मेरे चुनाव लड़ने का एक उद्देश्य है।

वास्तविकता- और किसी की हो के न हो, लेकिन मेरे जीतने के बाद, मेरा परिवार तो निश्चित रूप से खुशहाल हो ही जाएगा।

चुनाव में टिकट मिले या न मिले, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। पार्टी मेरी मां समान है, मैं उसे कभी भी नहीं छोड़ सकता हूं।

वास्तविकता- यदि अन्य किसी भी पार्टी ने, मुझे किसी भी जगह से टिकट दे दिया, तो मैं वहां से चुनाव लड़ सकता हूं। लेकिन चुनावी मैदान नहीं छोडूंगा।

मेरी पार्टी का निर्णय है, कि वह इस बार उम्रदराज नेताओं को टिकट नहीं देगी।

वास्तविकता- अभी तो मेरी उम्र ही क्या है, सिर्फ 89 का ही हूं। 100 या 105 तक तो युवा लड़कों जैसी जनसेवा कर सकता हूं।


अब आगामी जीवन उद्देश्य केवल समाजसेवा ही है, अतः इस बार केवल जनसेवा करने के लिए ही टिकट मांग रहा हूं।

वास्तविकता- एक बार मुझे टिकट तो दे दो, जीतते ही उन सभी लोगों को, जो कि मेरी आसान राह में रोड़ा बन रहे थे, नाकों चने न चबवा दिए तो कहना।

हमारी पार्टी में केवल टिकट लेकर चुनाव लड़ना नहीं, बल्कि अनुशासन सर्वोपरि माना जाता है, अतः पार्टी चाहे जिसे टिकट दे, हमारा काम अपने प्रत्याशी को जितवाना है।

वास्तविकता- मुझे टिकट नहीं तो कोई बात नहीं, जिसे भी पार्टी से टिकट मिलेगा, अपनी संपूर्ण निष्ठा के साथ, उसे तन, मन, धन से हरवाने का प्रयास करूंगा।

मैंने हमेशा ही अपनी पार्टी को, अपनी मां के समान माना है और इसीलिए मैं टिकट की भी मांग कर रहा हूं।

वास्तविकता- यदि मुझे टिकट नहीं दिया, तो मैं अपनी इस मां को वृद्धाश्रम में भी छोड़ सकता हूं।

मेरा राजनीति करने का उद्देश्य कुर्सी पर बैठना नहीं, बल्कि सच्ची देश सेवा करना है।

वास्तविकता- यही देश सेवा का इरादा तो, मेरे तथा मेरे परिजनों के लिए सुनहरे कल की रचना करेगा।


राजनीति में गरीबी दूर करना भी, राजनेताओं का एक बड़ा लक्ष्य रहता है, मैं इसे शत प्रतिशत प्राप्त करुंगा।

वास्तविकता- यदि मेरे चुनाव जीतने से किसी एक परिवार की, मेरे सगे संबंधियों की, मेरे परिचितों की तंगहाली दूर होती है, तो इस शुभ कार्य में, किसी को भी क्या आपत्ति होनी चाहिए। 

यह तो हमारी राजनीति के एक सुउद्देश्य की पूर्ति का सदप्रयास है। अंत में मैं, बस इतना ही कहना चाहता हूं कि, आप लोग मुझे केवल एक बार इस चुनाव में, विजयी बनाकर विशेष राजनेता बना दें, मैं जीतने के बाद, मेरे संपूर्ण कार्यकाल में, आपको अति विशिष्ट आम आदमी बनाऊंगा।

-ललित भाटी, इंदौर

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