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मैं माटी का दीपक हूँ (कविता) -डॉ अ कीर्तिवर्धन


मैं माटी का दीपक हूँ।
शाम ढले जल जाता हूँ
रात रात भर जलता रहता
तम को दूर भगाता हूँ
मैं माटी का दीपक हूँ।

मैं माटी का दीपक हूँ।
सुबह हुई मैं ढल जाता हूँ
रातों की तन्हाई में भी
कभी नहीं घबराता हूँ,
मैं माटी का दीपक हूँ।

मैं माटी का दीपक हूँ।
तेल मिला फिर बाती आई
सबने मिलकर जोत जलायी
राज की बात बताता हूँ,
मैं माटी का दीपक हूँ।

मैं माटी का दीपक हूँ।
बच्चों तुम भी मिलकर रहना
दुश्मन को भी मार भगाना
यह सन्देश सुनाता हूँ,
मैं माटी का दीपक हूँ।

-डॉ अ कीर्तिवर्धन, मुजफ्फरनगर


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