दीये की आग़ोश में बैठी बाती,
ज्योतिर्मय प्रकाश फैलाती
भर-भर पीती तम के प्याले,
बदले में धरती उजलाती
तोड़ अंधकार की चिर निंद्रा,
जीने की नई राह दिखलाती
करती आंधियों से झूमाझटकी,
फिर भी तन कर झीलमिलाती
झोंपड़ी, अट्टालिका का भेद भूल,
दीप मालिका में सज इठलाती
प्रेम समर्पण का अनुपम संगम,
वजूद मिटाकर भी मुस्कुराती ।
-पंकज धींग,नीमच
जीने की नई राह दिखलाती
करती आंधियों से झूमाझटकी,
फिर भी तन कर झीलमिलाती
झोंपड़ी, अट्टालिका का भेद भूल,
दीप मालिका में सज इठलाती
प्रेम समर्पण का अनुपम संगम,
वजूद मिटाकर भी मुस्कुराती ।
-पंकज धींग,नीमच
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