तुम हो क्षणिक तृप्ति के चाहक ,
तुमने जानी केवल लघुता ।
मरुथल-मरुथल भटका हूँ तब ,
मेरी प्यास अमर हो पाई ।
पाया हर संवाद सुखद तो ,
खुशियों का संसार बुना है ।
आवाज़ों से घिरे हुए तुम ,
तुमने केवल शोर सुना है ।
लेकिन मैं पीड़ा का प्रेमी ,
मेरा मन दहका अंगारा ।
अपनी पीर व्यक्त करने को ,
मैंने केवल मौन चुना है ।
खुशियों का संसार बुना है ।
आवाज़ों से घिरे हुए तुम ,
तुमने केवल शोर सुना है ।
लेकिन मैं पीड़ा का प्रेमी ,
मेरा मन दहका अंगारा ।
अपनी पीर व्यक्त करने को ,
मैंने केवल मौन चुना है ।
जितना गहरा मौन हुआ है ,
उतनी पीर मुखर हो पाई ।
मरुथल- मरुथल भटका हूँ तब,
मेरी प्यास अमर हो पाई ।।
-डॉ दिनेश त्रिपाठी शम्स, असम
0 टिप्पणियाँ