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धर्म का मर्म क्या? (कविता) -डॉ अ कीर्तिवर्द्धन


धर्म का मर्म क्या? जो आज तक जाने ना,
रूढ़ियों में छिपे संस्कार, जानबूझ माने ना।
बात करते हैं वो देखिये दुनिया बदलने की,
पीपल वृक्ष पर देव का सार, जो पहचाने ना।

पीपल प्राण वायु देता है, इसलिए पूजा जाता है,
सूरज उर्जा का दाता है, इसलिए देव कहलाता है।
धरती हमको अन्न फल देती, वरूण देव जल लाते,
देती दूध गुणकारी, गाय को माता माना जाता है।

पढ़े लिखे कुछ मुर्ख, जो राम पर प्रश्न उठाते हैं,
मर्यादा का पालन सीखो, तब राम बना जाता है।
धर्म की मर्यादा बनी रहे, पापी का न मूल बचे,
कुरुक्षेत्र में ज्ञान का दर्शन, कृष्ण ही दे पाता है।

दो हाथ दो पैर सभी के, सबकी दो ही आँखें होती,
कुछ अंधे आँखों के होते, कहीं ज्ञान अंधा पाता है।
चार हाथ लक्ष्मी माँ के, सर्व कल्याण भाव जताते,
मुर्ख व्यक्ति रावण जैसा, अहंकार घिर मारा जाता है।

रावण के थे दस शीश, यह शास्त्र हमें बताते,
अहंकार से डूबा मानव, यह अहसास कराता है।
सहस्त्रबाहू की सहस्र भुजाएँ, ताक़त का प्रतीक,
अज्ञानी समझ सकें ना, गूढ़ रहस्य छिपा होता है।

-डॉ अ कीर्तिवर्द्धन, मुज़फ़्फ़रनगर


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