निर्झर (कविता) -डाॅ वाणी बरठाकुर 'विभा'
मैं बहती
कलरव करती
चमचमाती
बूंदों के साथ ।
बहाकर लाती
पहाड़ी कहानी
युगों युगों से
लेकर साथ ।
हरे भरे
पहाड़ों के
हृदय चीरकर
लाती हूँ
गुनगुनाती हूँ
जनजाति के
दुख सुख के
संगीत ।
पत्थरों पर
टकराकर भी
छमछम नाचती
पावन मीठा
जल लेकर
सबको पिलाती ।
मेरी ही स्पर्श से
धरती ने हरियाली
चादर ओढ़ी
दो घाटों की
कहानी कहकर
सुनाती ।
कुसुम कुमुद के
सुगंधित मलय
मेरे कारण
लेकर बहती
पंछी मुझसे
मधु पान करते
सुरीला संगीत
सुबह शाम सुनाते ।
मैं वो निर्झर हूँ
गीत हृदय के भी
गाती हूँ
खिलखिलाकर
हँसती और
दुखों की बूंदे लेकर
नैनो से बहती हूँ ।
-डाॅ वाणी बरठाकुर 'विभा',तेजपुर, असम
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