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ज्योति पर्व दीपावली - डॉ सीमा शाहजी


अमावस्या का घनघोर निविड़ अंधकार...। चारों ओर गहन कालिमा ने जैसे प्रकृति की इस अनमोल धरा पर काली चादर ढ़क दी हो। उस अंधेरी अमा निशा के बीच नन्हे -नन्हे दीपकों की झिलमिलाती रोशनी...प्रकाश और अंधकार का शाश्वत संघर्ष। अंधकार असीम है, अनंत है। प्रकाश सीमित है, लघु है और उसका माध्यम दीपक, छोटा है व नन्हा है, फिर भी उसका साहस अमर और अक्षुण्य है, जब तक दीपक में प्राण है वह अपने उजास से ओपमायमान होता रहता है।

लक्ष्मी पूजन के लिए किसी के पास सुविधा हो ना हो मगर अपनी दहलीज पर रखने के लिए एक माटी का दीप हर कोई आभासित कर ही लेता है कि लक्ष्मी मैया कहीं भूले भटके आ जाए तो रास्ते पर रोशनी तो रहे। इसीलिए अमावस्या की गहरी परतों को चीर कर प्रकाश फैलाने वाले छुटके दीपक सब कहीं है। विशाल अट्टालिकाओं से लेकर साधारण झोपड़ियां तक यही सब देखकर दीपावली के बारे में अंतस में भावनाएं कुछ यूं बयां होने लगती है..."यह तो ज्योति पर्व है और प्रकाश चैतन्य की भारतीय मनीषा है उस आलोक में जो इस सृष्टि का आधार है, जीवन का संबल है ,प्रगति का पाथेय है, हमारी आराधना की संस्कृति है इसको हम वंदना का अर्ध्य देते हैं ।"

हमारे वेदों में उल्लेख है -"असतो मा सद्गमय/ तमसो मा ज्योतिर्गमय/ मृत्योमां अमृतं गमय" असत्य और मृत्यु भी अंधकार के प्रतीक है हम उत्तरोत्तर प्रकाश की ओर बढ़ते हुए सूर्य के समान उत्तम ज्योतिर्मय सर्वोत्कृष्ट अवस्था को प्राप्त करें। प्रकाश का अक्षुण्ण भंडार ज्योतिपुंज सूर्य को अपने लिए परम हितकारी मानते हुए ऋग्वेद का सृष्टा भी प्रभु से कामना करता है।

"हे प्रभु, विपुल तेज वाला सूर्य हमारे लिए कल्याणकारी होकर उदित हो, चारों दिशाएं हमारे लिए मंगलकारी हो,अविचल पर्वत नदियां जल जैविक हवाएं हमारे लिए कल्याणकारी हो।"

यजुर्वेद का रचयिता भी सूर्य को प्रणाम करके कहता है "सबके दिव्य जनक और प्रेरक शक्तिपुंज के वरणीय तेज का हम ध्यान करते हैं , ताकि वह हमारी अज्ञान वृत्ति को दूर करके बुद्धि की निर्मलता व तेजस बनाए रखने में प्रेरणा दे"

हमारी भारतीय संस्कृति में ज्योति से अभिप्राय केवल भौतिक प्रकाश ही नहीं आध्यात्मिक प्रकाश भी है गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है-

राम नाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहिये, जो चहसि उजियार ।।

संत कबीर ने भी ज्ञानदीप की चर्चा करते हुए कहा है-

"जब मैं अज्ञानतावश संसार के द्वंदों को लेकर घूम रहा था रास्ते में मुझे सदगुरु मिले और उन्होंने ज्ञान- दीप मेरे अंतस में जला दिया। इस उजास के सहारे में अज्ञान को हरा पाया । संसार के सारे हाट का सौदा कर आया"

सभी धार्मिक आस्थाओं में दीपक की स्थापना होती है वह मंदिर की आरती का दीपक है , तो मस्जिद का चिराग भी है ,कहीं वह महावीर का ज्योति स्तंभ है तो कहीं वह गिरजाघर में क्रॉस के सामने जलते हुए हजारों कैंडल हे, तो पारसियों और बहाइयो में वह ईश्वरी रूप का पूजनीय तसव्वुर है।

कहीं गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी के प्रकाश के साथ साथ आलोक का प्रहरी भी है । महावीर और बुद्ध का केवल्य ज्ञान भी प्रकाश ही तो है। इसी के सहारे उन्होंने जगत की मानवता को ज्ञान का उदात्त संदेश दिया है। कई महान विभूतियों ने अपने चेतस के दीपक को पहचान लिया था उनके प्रकाश की लो में जीवन व्यवहार, नेकी, इंसानियत, के कहीं आख्यान देकर दुनिया को "तमसो मां ज्योतिर्गमय "की एक पवित्र आस्था की बातें जलाकर अध्यात्म की सुगम राह बताई थी। 

प्रकाश इसलिए प्रणम्य है क्योंकि उसमें आत्मीयता की किरणें फुटी है सात्विकता का वैभव छिपा होता है जो प्रकारणतर से सत्य न्याय मनुष्य चेतना का आधारभूत संदेश देता है इसलिए सांवलन और सौजन्यता व सहायता से बड़ा उजाले का कोई बड़ा पाठ नहीं है यही उजास की अंकुरण यात्रा है।

अंतर किया दीप ज्योति ही "अहम् ब्रह्मास्मि" का रूप है अपने आप को पहचाना सुख दुख को समानांतर जानना ही जीवन का मर्म है दीपावली पर्व पर छोटा सा दीप यही बात दोहराता है वह अतीत से आज तक बिंब प्रतिबिंब उत्सव संस्कृत का श्रेष्ठतम प्रतीक बनकर तमहारी के रूप में पथ प्रदर्शक बना हुआ है। 

दीपावली की उजियाली बेला में आत्मिक ज्योति प्रखर बनाना ही आलोक के पूजा पर्व का संदेश देता है संपदा की देवी लक्ष्मी का यह पूजन अर्चन हमारी संस्कृति व संस्कारों में रचा बसा एक उत्सवी संस्करण है। जो जननी और जन्मभूमि की गरिमा की अवधारणा को पुष्ट और अभिमंडित करता है। नारी का परमोज्जवल स्वरूप उसे देवी मां महालक्ष्मी से यही प्रार्थना है कि हमें वह सुमति प्रदान करें जो हमारी कुमति का प्रक्षालन कर सके हमारे मन के अंधेरे कोनों को अपने आभामंडल से प्रकाशित करें और अपनी उजली दृष्टि से प्राणी मात्र का संताप हर सके।

कर्म पुरुषार्थ को नई दिशा नया पाथेय मिले। वह अंधेरों से लड़ने का आत्म भाव पैदा करें और अंतस के चिंतन में दीप की चमकती उर्मियों के साथ मां लक्ष्मी का निर्मल रूप प्रेरणापुंज बने तभी दीपोत्सव मानना इस विरोधाभासी जगत में सार्थक होगा।साहित्यकार सूर्यभानु गुप्त का एक शेर है-

बरस रहा है अंधेरा हजार शक्लों में,
छटेगी रात चिरागों में आओ ढल जाए।

-डॉ.सीमा शाहजी, थांदला

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