मौत से नज़रें मिला बैठे हैं हम (ग़ज़ल) -हमीद कानपुरी
एक फ़ितने को उठा बैठे हैं हम।
शेर इक सोया जगा बैठे हैं हम।
बद नताइज अब भुगतने हैं सभी,
बेवफा से मन लगा बैठे हैं हम।
हम कभी डरते नहीं हैं मौत से,
मौत से नज़रें मिला बैठे हैं हम।
अब क़दम पीछे हटा सकते नहीं,
शर्त दुश्मन से लगा बैठे हैं हम।
खूब फ़ोड़े है पटाखे रात भर,
अब लिए बोझिल फ़ज़ा बैठे हैं हम।
याद हमको अब नहीं अपना ख़ुदा,
ना खुदा का ले पता बैठे हैं हम।
ऐशो इशरत में हुए ग़ुम इस तरह,
अपने रब को ही भुला बैठे हैं हम।
-हमीद कानपुरी
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