जीवन बीता शीतल हो चले,
सपने कुनकुने।
माथे पे बड़ी बिंदी,
साड़ी नाभि दर्शना
शानो पे गिरता हुआ,
जुल्फो का झरना।
आंखों की सलाइयों पर थे,
सपने कई बुने।
सपने कई बुने।
जाओ न यहां से,
उसका ये कहना।
और नयन कलश से
प्रेम का छलकना।
दौड़ पड़ा था कैसे मन,
गालों को छूने।
प्रेम का छलकना।
दौड़ पड़ा था कैसे मन,
गालों को छूने।
स्मृतियों की पलकों पर,
अश्रु जमे ओस की तरह।
अपने छिपाते मुझे,
अपने किसी दोष की तरह।
चिंदी चिंदी कर दिया मुझे,
निर्दय समय तूने।
-कमलेश कंवल, उज्जैन
निर्दय समय तूने।
-कमलेश कंवल, उज्जैन
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