उस जीवन का क्या कहना (कविता) -सुरेश रघुवंशी
मन हो जाए गंगा जल सा, उस जीवन का क्या कहना
अपना समझे दर्द पराया,उस जीवन का क्या कहना
किसी दरख़्त से पूछो तुम ,सर्दी गर्मी क्या होती है
मौन खड़ा जो सब कुछ सह ले,उस जीवन का क्या कहना
जितना घिसता उतना महके ,चंदन की तासीर यही
घिस घिस कर चंदन हो जाए,उस जीवन का क्या कहना
अपनो को तो देते है सब ,जग का है दस्तूर यही
गैरो के जो काम बना दे,उस जीवन का क्या कहना
ठोकर खाकर के गिर जाना,कोई दुख की बात नही
गिर कर के, जो फिर उठ जाए,उस जीवन का क्या कहना
गाड़ी, घोड़े, बंगला, मोटर,कुछ भी न हो जीवन में
साथ मे यदि माँ बाप रहे तो ,उस जीवन का क्या कहना
गुमनामी में जीकर तो,लाखो मरते है दुनिया में
भारत मां पर जान लुटा दे,उस जीवन का क्या कहना
चूड़ी और पायल के तो लाखों दीवाने दुनियाँ में
कफ़न तिरंगा और शहीदी ,उस जीवन का क्या कहना
-सुरेश रघुवंशी, नागदा
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