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मानव विचारों को गुप्त रूप से चित्रित करने वाले चित्रगुप्त -अशोक 'प्रवृद्ध'

15 नवम्बर 2023 को चित्रगुप्त पूजा पर विशेष-

मनुष्यों एवं समस्त जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले न्यायब्रह्म को पौराणिक ग्रंथों में चित्रगुप्त कहा गया है। मान्यता है कि मानव मन में आने वाले सभी विचार चित्रों के रुप में होते हैं। और भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं। अंत समय में ये सभी चित्र मृतक के दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं। मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं। इन्हीं के आधार पर जीवों के परलोक व पुनर्जन्म का निर्णय चित्रगुप्त करते हैं।

मान्यतानुसार भगवान चित्रगुप्त ही सृष्टि के प्रथम न्यायब्रह्म हैं। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक अथवा पुनर्जन्म का निर्णय लेने का अधिकार चित्रगुप्त के पास है। स्वर्ग अथवा नरक भेजने का निर्णय भगवान धर्मराज, चित्रगुप्त के द्वारा संचित जीवात्मा द्वारा किए गए कर्मों के आधार पर ही करते हैं। चित्रगुप्त संपूर्ण विश्व के प्रमुख देवता हैं। चित्रगुप्त सभी के ह्रदय में वास करते है।

मान्यतानुसार भगवान ब्रह्मा की कई विभिन्न संताने थीं। मन से उत्पन्न हुए मानस पुत्र- वशिष्ठ, नारद, अत्रि आदि थे, तो शरीर से पैदा हुए धर्म, भ्रम, वासना, मृत्यु और भरत आदि अनेक पुत्र थे। लेकिन चित्रगुप्त के जन्म अवतरण की कथा ब्रह्मा के अन्य पुत्रों से भिन्न है, पृथक है। परमपिता ब्रह्मा के पहले तेरह मानस पुत्र ऋषि हुए और चौदहवें पुत्र चित्रगुप्त देव हुए। उल्लेखनीय है कि ब्रह्मा सृजित उपरोक्त सभी नाम प्राय: देशभेद सूचक हैं। परंतु चित्रगुप्त से संबंधित विभिन्न पौराणिक कथाएं और कायस्थीय मत कुछ और ही कथा कहती हैं। यद्यपि वेदों में मानव इतिहास की बात वैदिक विद्वान नहीं स्वीकारते, तथापि कतिपय विद्वान व कायस्थजन ऋग्वेद 8/21/18 में अंकित मंत्र- चित्र इद राजा राजका इदन्यके यके .......वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत।। से चित्रगुप्त का संबंध जोड़ते हैं।

कुछ पौराणिक ग्रंथों में ब्रह्मा के सत्रह मानस पुत्र माने गए हैं और चित्रगुप्त को महाशक्तिमान राजा के नाम से सम्बोधित किया गया है। ब्रह्मदेव के सत्रह मानस पुत्र होने के कारणवश यह ब्राह्मण माने जाते हैं। इनकी दो पत्नियाँ थी- सूर्यदक्षिणा, जिसे नंदनी भी कहा गया है, और एरावती जिसे शोभावति नाम से भी पुकारा गया है। पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा (नंदनी) एक ब्राह्मण कन्या थी जिससे उन्हें चार पुत्र प्राप्त हुए – भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु। दूसरी पत्नी एरावती (शोभावति) ऋषि कन्या थी, इनसे आठ पुत्र हुए- चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र और अतिन्द्रिय कहलाए।

कतिपय मान्यतानुसार चित्रगुप्त चौदह यमराजों में से एक हैं, जो प्राणियों के पाप और पुण्य का लेखा रखते हैं। चित्रगुप्त के संबंध में पद्मपुराण, गुरुणपुराण, भविष्यपुराण आदि पुराणों में वृहद कथाएं अंकित हैं। स्कंदपुराण के प्रभासखंड के अनुसार चित्र नामक राजा लेखा- जोखा अर्थात हिसाब- किताब रखने में बड़े दक्ष थे। यमराज की इच्छा थी कि इन्हें अपने यहाँ लेखा रखने के लिए ले जाएं। इसलिए एक दिन राजा के नदी स्नान के लिए जाने पर यमराज ने उन्हें उठवा मंगा लिया और अपना सहायक बना लिया। इस पर राजा की एक बहन अत्यंत दुखी हुई और चित्रपथा नामक नदी होकर चित्र को ढूँढ़ने समुद्र की ओर गई। प्राय: देशभेद सूचक चित्रगुप्त से संबंधित इन कथाओं व नामों के अतिरिक्त भी कथाएं पुराणों में प्राप्य हैं, जिनका अर्थ व भाव कुछ और ही कथा का बखान करते हैं।

गरुड़ पुराण में यमलोक के निकट ही चित्रलोक की भी कल्पना की गयी है। और चित्रगुप्त को स्वर्ग- नरक के पात्रता का दाता कहा गया है।गरुड़ पुराण के चित्रकल्प के एक विवरणी के अनुसार यमपुर के पास स्थित चित्रगुप्तपुर में चित्रगुप्त के अधीनस्थ कायस्थ लोग बराबर काम किया करते हैं। वर्तमान में भारत के कई क्षेत्रों में निवास करने वाले कायस्थजन अपने को चित्रगुप्त का वंशज बतलाते हैं। और कार्तिक मास के उजले पक्ष अर्थात कार्तिक शुक्ल द्वितीया को आने वाली यमद्वितीया के दिन चित्रगुप्त और कलम दावात की पूजा करते हैं। शापग्रस्त राजा सुदास यम द्वितीया तिथि को इनकी पूजा करके स्वर्ग के भागी होने की कथा भी प्रचलित है।भीष्म पितामह ने भी इनकी पूजा करके इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त किया था। कार्तिक मास के उजले पक्ष और चैत्र मास के अंधेरे पक्ष अर्थात कार्तिक शुक्ल और चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वितीया यम द्वितीया कहलाती है।

एक अन्य पौराणिक मान्यतानुसार चित्रगुप्त के पिता मित्त नामक कायस्थ थे। इनकी बहन का नाम चित्रा था, पिता के देहावसान के उपरान्त प्रभास क्षेत्र में जाकर सूर्य की तपस्या की, जिसके फल से इन्हें ज्ञानोपलब्धि हुई। यमराज ने इन्हें न्यायालय में लेखक का पद दिया। उसी समय से ये चित्रगुप्त नाम से प्रसिद्ध हुए। यमराज ने इन्हें धर्म का रहस्य समझाया। चित्रलेखा की सहायता से चित्रगुप्त ने अपने भवन की इतनी अधिक सज्जा की कि देवशिल्पी विश्वकर्मा भी इनसे स्पर्धा करने लगे।

एक अन्य सर्वप्रचलित कथा के अनुसार सतयुग में भगवान नारायण की नाभि में स्थित कमल से चतुर्मुखी ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिनसे वेदवेत्ता भगवान ने चारों वेद कहे। तत्पश्चात नारायण ने ब्रह्मा से कहा कि आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, इसलिए मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत की रचना करें। यह वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्मा ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग, जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनु को उत्पन्न किया। तत्पश्चात दक्ष प्रजापति को पैदाकर उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने के लिए कहा। दक्ष प्रजापति से साठ कन्याएं उत्पन्न हुईं, जिनमें से दस धर्मराज को, तेरह कश्यप को और सताईस चन्द्रमा को दीं। कश्यप से देव, दानव, राक्षस और गंधर्व, पिशाच, गो और पक्षियों की जातियां पैदा हुईं। धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर पितामह ब्रह्मा ने उन्हें सब लोकों का अधिकार देते हुए कहा कि तुम आलस्य त्यागकर जीवों के द्वारा किए गए शुभ- अशुभ कर्मों के अनुसार न्यायपूर्वक वेद संहिताओं में अंकित विधि- विधानानुसार कर्त्ता को कर्म का फल प्रदान करने का कार्य करो। ब्रह्मा के इस वचन को सुन धर्मराज ने कहा कि मैं अकेला इस भार को कैसे निर्वहन कर पाऊँगा? इसलिए मेरे लिए कोई सहायक प्रदान करें, जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो। धर्मराज की इस मांग पर ब्रह्मा लंबी अवधि के लिए ध्यानमग्न हो समाधि में चले गए। भविष्यपुराण के अनुसार ब्रह्मा के सृष्टि बनाकर ध्यानमग्न होने पर उनके शरीर से एक विचित्रवर्ण पुरुष कलम- दवात हाथ में लिए उत्पन्न हुआ। सहस्त्रों वर्षों के बाद ब्रह्मा का ध्यान भंग होने पर उन्होंने अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख समान गर्दन, गूढ़ सिर, चन्द्रमा के समान मुख वाले, कलम-दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देखा। उस पुरुष को देख ब्रह्मा ने उससे उसका परिचय पूछा। तब उस पुरुष ने हाथ जोड़ निवेदन पूर्वक अपना नाम व काम उनसे ही पूछते हुए कहा कि मैं आपके चित्त में गुप्त रूप से निवास कर रहा था, अब आप मेरा नामकरण करें और मेरे लिए कोई दायित्व मुझे सौपें। तब ब्रह्मा ने कहा कि तुम मेरे चित्र अर्थात शरीर में गुप्त अर्थात विलीन थे और तुम मेरे काया अर्थात शरीर से उत्पन्न हुए हो। इसलिए तुम कायस्थ हुए और तुम्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाएगा। तुम्हारा कार्य प्रत्येक प्राणी की काया में गुप्तरूप से निवास करते हुए उनके द्वारा किये गए सत्कर्म और अपकर्म का लेखा रखना और तदनुसार सही न्याय कर उपहार और दंड की व्यवस्था करना है। तुम प्रत्येक प्राणी की काया में गुप्तरूप से निवास करोगे।

कुछ पौराणिक ग्रंथों में ब्रह्मा की आज्ञा के बाद उस पुरुष चित्रगुप्त के कोटि नगर जाकर चंड-प्रचंड ज्वालामुखी काली के पूजन में लग जाने की बात कही गई है। कथा के अनुसार उन्होंने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी देवी का जप और स्तोत्रों से भजन-पूजन और उपासना की, और स्वर्ग, मृत्यु, पाताल आदि लोक-लोकांतरों को रोशनी देने वाली जगद्धात्री, सत, रज, तमोगुण रूप देवगणों को कांति प्रदान करने वाली, हिमाचल पर्वत पर स्थापित आदिशक्ति चंडी को प्रसन्न कर परोपकार में कुशल, अपने अधिकार में सदा स्थिर रहने और असंख्य वर्षों की आयु का वरदान प्राप्त किया। यह वर देकर देवी दुर्गा अंतर्ध्यान हो गईं। उसके बाद चित्रगुप्त धर्मराज के साथ उनके स्थान पर गए और वे आराधना करने योग्य अपने आसन पर स्थित हुए।
-अशोक 'प्रवृद्ध'
(अदिति)

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