अक्षर खेती
कुआं का हूं मेंंडक
छोटी सा मुँह ।
युद्ध की भूमि
बचा वह किरण
खिलेगा फूल ।
बोलता कौवा
स्वयं को मजदूर
युद्ध की भूमि
बचा वह किरण
खिलेगा फूल ।
बोलता कौवा
स्वयं को मजदूर
ठगी का धंंधा।
आज का फूल
प्रेम के बाजार में
लज्जा बेचता ।
मेरा पुरखे
दासता के कुँए में
डूबते रोज ।
चमकता है
लोभ के आकाश में
पैसा के चांद।
रात की रानी
दिन की है जवानी
चेहरे है दो।
आज का फूल
प्रेम के बाजार में
लज्जा बेचता ।
मेरा पुरखे
दासता के कुँए में
डूबते रोज ।
चमकता है
लोभ के आकाश में
पैसा के चांद।
रात की रानी
दिन की है जवानी
चेहरे है दो।
-सूर्यप्रसाद लाकोजू, नेपाल
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