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स्पर्श (कहानी)


"सुयश।" बाहर से बंटी की आवाज़ आई, तो सुयश बोला "एक मिनिट रुको बंटी।अभी आ रहा हूँ।" फिर अपनी मम्मी के पास जाकर बोला "मम्मी! जल्दी से टॉफी के पैसे दे दो। बाहर बंटी बुला रहा है।"

"दे रही हूँ बाबा। हाथ तो पोंछ लूँ।रोज-रोज टॉफी। रोज-रोज टॉफी।रोज टॉफी खाने से दाँत सड़ जायेंगे बेटा। समझते क्यों नहीं हो?" शोभा ने अपने पाँच वर्षीय बेटे सुयश को समझाने की कोशिश की।

"मम्मी! सिर्फ एक टॉफी में दाँत सड़ जायेंगे?" सुयश ने उत्सुकता से पूछा।

"तुझे तो कुछ भी समझाना बेकार है।अच्छा है, ये ले पाँच का सिक्का।आज फुटकर पैसे नहीं हैं मेरे पास। ऐसा करना,टॉफी लेने के बाद दूकान से दो माचिस भी ले आना।" शोभा ने सुयश को पाँच का सिक्का पकड़ाते हुए कहा।

"ठीक है मम्मी।" कहकर सुयश सिक्का लेकर चला गया।थोड़ी देर में सुयश घर लौट कर आया और मम्मी को दो माचिस दे-दीं।

शोभा ने पूछा "बाकी के पैसे?"

"बाकी के पैसे खर्च हो गए मम्मी।" सुयश ने थोड़े संकोच में कहा।"कैसे खर्च हो गए? शोभा ने गंभीरतापूर्वक पूछा।

"देखो, दो रुपये की दो माचिस आईं और दो रुपये की दो टॉफी।"

सुनकर शोभा ने बीच में टोकते हुए कहा "आज तुमने दो टॉफी खाईं?"

"नहीं मम्मी! मैनें तो एक ही टॉफी खाई वो एक टॉफी मैनें सड़क किनारे भीख माँगने वाले अंधे बाबा के छोटे से बेबी को दे -दी और जो एक रुपये का सिक्का बचा था, वो भी उन अंधे बाबा को दे दिया। मम्मी वो अंधे हैं, इसलिए भीख माँगते हैं। क्योंकि उनको कोई काम नहीं देता है।"

"शोभा हँसते हुए बोली "वो सचमुच के अंधे हैं या भीख माँगने के लिए बने हैं?"

"मम्मी! वो सचमुच के अंधे हैं। मैंने जब उनके बेबी को टॉफी दी,तो वो बहुत खुश हुए।उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा और कहा "तुम बहुत अच्छे बच्चे हो। तुम जीवन में बहुत उन्नति करोगे।"

मैनें उनसे पूछा था,कि "आपकी आँखों की रोशनी कैसे चली गई?" तो वे बोले "मैं गरीब गाँव में जमींदार के खेत में काम करता था और वहीं झोपड़ी बनाकर अपनी पत्नी तथा इस बच्चे के साथ रहता था। एक दिन दोपहर में,मैं खेत में काम कर रहा था,वहीं पास में मेरा यह एक साल का बेटा खेलते हुए सो गया था और मेरी पत्नी झोपड़ी में रोटी बना रही थी, तभी अचानक आसमान में काले-काले बादल छा गए और बिजली कड़कने लगी। मैं अपना पूरा काम निपटा के झोपड़ी में जाने की सोच ही रहा था कि, अचानक बड़ी-बड़ी बूँदों के साथ कड़कती हुयी,जोरदार आवाज करती चमकदार बिजली मेरी झोपड़ी पे गिरी और झोपड़ी के साथ मेरी पत्नी भी जलकर मर गई। बिजली की उस जोरदार आवाज से यह बच्चा बहरा हो गया और चमक से मेरी आँखों की रोशनी चली गई। इस हादसे के बाद जमींदार ने मुझे काम से निकाल दिया, तो अब भीख माँगने के सिवाय कोई और चारा मेरे पास नहीं था।" फिर मेरे दिए सिक्के को उन्होंने खूब टटोलकर देखा और मुझसे बोले "बेटा, तुमने मुझे एक रुपया दिया है,भगवान तुम्हें लाखों की दौलत दे।"

तभी बंटी बोला "आपको कैसे मालूम, कि यह एक रुपये का सिक्का है?" तो वो बोले "भगवान ने तन की आँखें छीन लीं,लेकिन मन की आँखों की रोशनी बढ़ा दी है। स्पर्श से मैं हर सिक्के को पहचान लेता हूँ। यही नहीं, अगर कोई प्रतिदिन मुझे पैसे देता है, तो पैसा छूकर बता सकता हूँ, कि वह सिक्का किसने दिया है। मम्मी यह अचरज की बात है ना ?"

शोभा ने चकित होते हुए कहा "यह तो सचमुच अचरज की बात है। अब मैं रोज अलग सिक्के दूँगी। तुम रोज कुछ पैसे उन बाबा को दे आया करो।"

अचरज तो इस बात का था कि, बाबा रोज ही,स्पर्श करके सिक्के को पहचान लेते थे और सुयश को खूब दुआएं देते थे।एक दिन शोभा ने सुयश के हाथ में खोटा सिक्का पकड़ा दिया और कहा "चलो बेटा!आज मैं भी तुम्हारे बाबा का स्पर्श चमत्कार देखना चाहती हूँ। तुम वहाँ एकदम चुप रहना। उनको ये मत बताना, कि मम्मी साथ में हैं।"

"ठीक है मम्मी।" वे दोनों वहाँ पहुँचे, जहाँ वो भिखारी बैठा था। सुयश ने चुपचाप वो खोटा सिक्का उसके कटोरे में डाल दिया। भिखारी ने सिक्के को उठाया।उसे उंगलियों से खूब छुआ और उसे माथे से लगाकर अपनी झोली में रखते हुए बोला "सुयश बेटा! खूब फलो-फूलो।"

यह देखकर शोभा अपने आप को रोक नहीं पाई। वह बोल उठी "सुयश को तो पहचान लिया,लेकिन सिक्के की पहचान नहीं बताई।"

सुनकर भिखारी गंभीर स्वर में बोला "यह सिक्का बाजार में नहीं चलेगा।"

"जब यह खोटा सिक्का था,तो फिर इसे अपने माथे से लगाकर झोली में क्यों रखा?" शोभा ने उत्सुकता जाहिर की।

"यह बच्चा मुझे रोज ही अच्छे सिक्के बड़े प्रेम से देता है। यदि आज इसके हाथ से उतने ही प्रेम से खोटा सिक्का मिला है, तो मैं इसके प्रेम का अनादर क्यों करूँ?" सुनकर शोभा ने उनकी स्पर्श शक्ति को मन ही मन में प्रणाम कर लिया।

-निरंजना जैन ,सागर (म.प्र.)


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